जमी पे गिरा पड़ा था रुतबा मेरा,
उठाने उसे अब रमज़ान आया हैं,
पहुँचे हैं लोग कई चाँद पे मगर,
चाँद कहाँ कोई तोड़ लाया हैं।
मन्दिर-मस्जिद बन्द हैं आज तो क्या,
हर घर मस्जिद और हर दिल मन्दिर बनाया हैं,
चुनाव के रैलियों में मशगूल हुकूमत ने,
मंदिर-मस्जिद बंद करने का फैसला सुनाया हैं।
मौलवी को उसके पुजारी दोस्त ने ,
इसे साज़िश की आशंका बताया हैं,
खा गए उस मुर्गे को भी पका के आज,
जिसने सुबह सारे मोहल्ले को जगाया हैं।
तोड़ दिया उसने फिर आज अपनी कलम को,
किसी ने पत्रकारिता को ही सारा फसाद बताया हैं
फाड़ दी उस नौ जवा ने अपनी सारी डिग्रियां रोते हुए,
जबसे सरकार ने पकौड़ा तलने को रोजगार बनाया हैं।
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