कश्मकश है इज़हार का ।।।।
खामोशी में इकरार है,,,
उनकी आंखों ने कहा
"उन्हें भी मुझसे प्यार है" ।।।।।-
क्योंकि इकरार हमेशा प्यार को ही नहीं दर्शाता,,,,
कभी कभी लोगों की दुर्बलता का भी पर्याय समझ लिया जाता है ।।।।-
टूटने का दर्द वो शाख क्या जाने,,
जिस पर हर सावन नए पत्ते उगते हों,,,,
टूटने का दर्द उन पत्तों से पूछो,,,
जिनका शाख बिना कोई वजूद नहीं ।।।
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क्यों सबको अच्छा मान लेना खाता हो जाती है,,,
दिल में बसा लेना सांसों पे ज़फा हो जाती है ????
क्यों नादान होकर जीना आसान लगता है,,,
पर रसीदगी खुशियों को तबाह कर जाती है???
क्यों हालात तब ही बस में नहीं होते,,,
जब रातों की नींद कहीं दूर चली जाती है???
क्यों सुबह उठना एक डरावना सपना लगता है,,
जो हमें जिंदगी की हकीकत से रूबरू कराती है???
क्यों खुद को उलझा के रखना पड़ता है,,
क्योंकि खुद से मिलो तो आंसू और तन्हा कर जाती है।।।-
ज़िंदगी कुछ यूं हो गई है ,,
मानो जी भी रहे हैं,,, और जिया भी नहीं जा रहा ।।।।
बातें लबों पे मय-सी है,,
मानो पी भी रहे हैं,,, और पिया भी नहीं जा रहा।।।
खता की सज़ा कुछ यूं मिली है,,,
मानो मर भी रहे हैं,, और मरा भी नहीं जा रहा ।।।।-
❤️ ख्यालों की कश्ती पे सवार ,
तेरी गलियों से गुजरती,, तेरा ही बस नाम कहती हूं,,,,
सुर्खाब के पर सी खूबसूरती बिखेरे तेरे लबों की एक मुस्कान ढूंढती हूं,,,
पलकें बिछाए एक आहट को तेरी,, चौखट पे सुबहो शाम करती हूं,,,
ए सनम! शामिल कर ले अपने साए में मुझे,, अपनी रूह को भी आज तेरे नाम करती हूं।।।। ❤️-
गर रज़ा दे तू तो कतरा - कतरा तुझ पर लूटा दूं......
सांसों को तेरी अपने रूह में समा लूं.....
लाल रंग ही है गर नुमाइंदा सच्चे इश्क का,,,,
तो जिस्मों जां को तेरे नाम के सिंदूर से सजा लूं ।।।।
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