ये दफ्तर, किताबे, रिसाले, काम की सारी बाते
तू जब भी याद आती है मैं सबकुछ भूल जाता हूं ...
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कभी लिखूंगा एक दास्तान
तेरी मेरी हर ख्वाहिशों को पिरोने की
जो हकीकत में तो थी उम्मीद से काफी दूर
फिर भी हर वक्त डर था तुझे खोने की
सब हसरतों,चाहतों से परे ये हमारी कहानी थी
अनकंडीशनल होने की शायद, यही तो निशानी थी
अनकंडीशनल,
जिसमे सवाल मुश्किल होते है, जवाब ....शायद होते ही नही
कि जो नज़रों में बसा है, उसे
नज़र भर देख न पाना
न छू सकना, न चूम पाना
एक ख्वाब की तरह आंखो में रखे,
वक्त वक़्त तुम्हारा याद आना .
माना की हर रिश्तों की होती है एक उम्र
मैने तो एक उम्र गुजार दी है तुझपे
अधूरी ही सही अपनी कहानी ऐसे ही लिखता जाऊंगा
कभी मिलना तुम मुझसे गांव के किनारे वाले मंदिर की सीढ़ियों पे
मैं तुम्हे अपनी दास्तान सुनाऊंगा....
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एक तुम हो
जिसको घर वाले, यार-दोस्त,पड़ोस-रिश्तेदार
सब जानते है,
जैसा तुम खुद को देखती हो रोज..आईने में
एक तुम हो
जिसको सिर्फ मैं जानता हूं,
जिसको मैंने अपने हिसाब से ढाल रखा है
अपने शब्दो में, अपने ख्यालों में
जिसको सिर्फ मैं समझ सकता हूं..-
तेरे बेतरतीब जुल्फों में छुपी मेरे हिस्से की हसीं....
मेरे इश्क की ये उधारी है तुमपे ।।
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नदी-पहाड़
जंगल-बूटे
पंखुड़िया- तितलियां
हर खूबसूरत निमार्ण के बाद,
बचे हुए सारे..
प्रेम,ममता,मृदु,अल्हड़पन
को एक सांचे में उढेल के,
अपने प्यार से उकेरा है...
ईश्वर ने माटी से नही,
अपने प्रेम की कूची से बनाया है 'तुम्हे'
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नाराज अब भी हूं तुझसे ये ज़ाहिर है पर,
दिल इन आँखों पे फिसले तो क्या हम करे..-
ज़िन्दगी खत्म नही होती,
फ़ख़त एक ख्वाब के रवानी होने से
मिट्टी भी तो हासिल है,
दरिया में पानी के न होने से-
आरज़ू अब भी हैं तेरी आगोश की मग़र,
मालूम है कि मेरी तन्हाई ही सच्ची है...-
जानता हूं,फिर भी उलझ जाता हूं तेरी बेईमान आखों में
कि दिल ही तो है, फिर सम्भल जाएगा!!-