तकदीर नहीं बताती मंजिल
का पता
राहों पर चलकर पैरों को
घिसना पड़ता है
और किस नसीब को बात
करते तुम जनाब
यहां अकेले रास्तों पर घूमकर ही
मंजिल का पता मिलता है।
Unknown 🖤
-
सलीके सिखाने लगे जिन्दगी के
कुछ अपने कुछ गैर हमें
बात साथ निभाने की आई
तो सभी अपना पता बदलने लगे।
Unknown 🖤-
नम आंखों से पूछा दिल ने
बता तेरा सवाल क्या है
आंखो ने दिल से कहा टूटा तू
है
बता तेरा हाल क्या है।
Unknown 🖤
-
उस रास्ते पर चल पड़े हम
मंजिल जिसकी अंजान थी
वो घर वालों का नाम लेती
रही मुर्शद
रकीब में बसी जिसकी जान थी।
Unknown 🖤-
नम थी आंखे मेरी दर्द
मैंने भी बहुत सहा है
और फिर ना जाने क्यूं
गालिब की महफिल में
उसने मुझे गैर कहा है।
Unknown 🖤-
कहती थी इश्क की मिसाल
दे लोग कुछ ऐसा करके दिखाएंगे
पगली रकीब से मोहब्बत करके
मुझे भी बदनाम कर गई।
Unknown 🖤-
कैसे भुलाए वो रिश्ते मुर्शद
वास्ते जिनसे हमारे पुराने थे
वो जगह अब भी हमें याद है
जिनसे जुड़े कई अफसाने थ
ना चाहकर भी इश्क दिखा ना पाए
अहसास मेरे पुराने थे
अब बस थक चुके हैं ये लफ्ज़ ही
जिन्दगी में अपनाने है।
Unknown 🖤-
हाल क्या पूछते हो दिल
का मुर्शद
जख्मों से अभी तक उभरे
नहीं है
और इश्क की कहानी मंजिल
तक पहुंचे
उन रास्तों से हम अभी तक
गुजरे नहीं है।
Unknown 🖤-
किस खयालात से निकली जिन्दगी
अजीब से रिश्ते बना गई
ना चाहते हुए भी इश्क हुआ उससे
जिससे कभी बात तक न हुई।
Unknown 🖤-
इश्क की कहानी कुछ ऐसी
चली महफ़िल में
लोग मुझसे जिन्दा रहने की
वजह पूछने लगे।
Unknown 🖤-