इंसानियत की आबरू को यूँ तार-तार ना कर
है मुक़द्दस ख़ुदा का दामन लहू के रंग से इसे दाग़दार ना कर
सुना है फ़क़ीरों को तौर ज़िंदादिली वाले आते हैें
ए मेरे ख़ुदा मुझे फ़क़ीर ही रहने दे मालदार ना कर
ख़बर है दौलत ख़रीद-दारी पर निकली है
ईमान को ईमान ही रहने दे बाज़ार ना कर
बड़ी खुद्दार है ये किस्मत कभी उधार नहीं रखती
तू कोशिशों से ख़फा होकर यूँ अपना सूद बेकार ना कर
जौहरी बना फिरता है बच्चा-बच्चा भी यहाँ "सखी "
अपनी सिफ़त को सिफ़त ही रहने दे किरदार ना कर !!- Tanu Srivastava "सखी"
2 JUL 2017 AT 0:06