Tanu Singh   (Tanu singh धानी)
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Fresh writer
Joined 20 May 2021


Fresh writer
Joined 20 May 2021
25 APR AT 15:03

सबमें रहकर देख लिया पर मैं को न जाना...
सबको सब कुछ मान लिया पर सबने मैं को ही ललकारा।
आत्मसम्मान की दास्तां सुना दी लेकिन किया सिर्फ आत्मग्लानी....
सबने सुनाई एक–एक कमियां और बताया इसे ठीक कर लो फिर तुम हो सबसे सयानी।
ना जाने सब मैं को ही क्यू पूर्ण करना चाहते थे सुन्य से सूर्य बनाना चाहते थे...
क्या सबको मैं से इतना प्रेम था या मैं को अपने सांचे में ढालना चाहते थे।
उलझन का हल ढूंढना चाहा मैं ने तो पाया...
मैं में रहकर देखा तभी मैं को जाना
पहचान तुम्हारी खुद में है क्यू ढूंढे जाके जमाना
आजाद पंक्षी को न पिंजरे की जरूरत ना सांचे में ढल जाना।।

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30 MAR AT 22:19

समस्या बस इतनी सी थी,
की यूंही जीने और जीने में फर्क समझ लिया।
जीना था उन्हें तो लगा पहली सीढ़ी पर ही मिल जाता होगा खुला आसमान।
समझा मानो नदियों से बहता पानी ले जायेगा स्वर्ग की ओर।
ख्याल किया कहानियां बन जाएंगी हकीकत और हकीकत सिर्फ एक कहानी।
शिखर आज़ादी होगी और भोर की पहली किरण एक आशा जो छड़िक भर में पूरे संसार में घर कर जाती है।
अपरिचित रह गए आसमान में उठने वाले भयानक बिजली, वर्षा और तूफान से।
उन चट्टानों से जो रूकावटे हैं लहरों की।
जाना तो समझा, जीना तो एक संघर्ष है, एक ऐसा संघर्ष जिसकी मंज़िल है परितोष।।




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14 MAR AT 23:57

वर्षा का स्वयंवर
घनघोर पवन संग झूम आई वर्षा
थोड़ी इठलाई थोड़ी बलखायी वर्षा
मत्सा में रंग कर फूली न समाई वर्षा
प्रसन्नता की होड़ में थोड़े बलखाये वृक्ष
चील–कौओं संग खुशियां मनाई वर्षा
सृष्टि के कड़ कड़ में बारात का जश्न है
मयूर संग फसलें सभी राह देख रहे
प्रकृति के रस्मो में सम्मलित होकर
हो चली घड़ी अब विदाई की
थोड़ी मुकुराई थोड़ी घबराई वर्षा
बस यूंही वर्षा का स्वयंवर इंसानों के चित्त से हो गया
उस वक्त से चित्त में समाई वर्षा।।




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10 MAR AT 19:35

प्रकाश श्रृंखला

अल्पाहार में योगदान इतना....
रात्रि का बलिदान कितना।
सावरे की गाथाएं सुने सब....
मुझ सांवले में भेद कितना।
मोती की प्रस्तुति बखूब है....
रेत में विविध सिप का सम्मान कितना।
रेशम की प्रशिद्धिता सभ्य है....
मोरी का जीवनदान कितना।
अवधान की अल्प नही....
बस अवबोध करे सम्मान दिलाने वाले का सम्मान कितना।।

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26 FEB AT 17:12

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19 JUL 2022 AT 10:12

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29 JUL 2021 AT 11:20

चा‌ँद जितनी दूर है मंज़िल मेरी
चंद क़दमों पर ही थकी सी मैं
लड़खड़ा रहे मेरे कदम
क्या मैं छू सकूंगी वो ऊँचा गगन।।

माया जाल में कैद है कोशिशें मेरी
बिखरी पड़ी है हौसलो की कश्ती मेरी,

कुछ बचा नहीं सिवाय उम्मीद के
उन्हीं उम्मीदों से चांँद को देखा,

गजब तेज है चाँद में
देखते ही सम्भल गए मेरे कदम
देखते ही देखते छू लिया वो मृगतृष्णा सा ऊँचा गगन
सजग हो उठे हौसले मेरे टूट गया वो माया जाल।।

फिर से उड़ चली में उम्मीदों के पंख लगाए
बिना लड़खड़ाए।।


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25 JUL 2021 AT 7:37

यहां हर पल एक नया संघर्ष है,
है एक नई कहानी....
कभी घना अंधेरा है,
तो कभी उमंग की लहरे....
कहीं दूर-दूर तक कुछ नहीं,
तो कहीं मौजो की रवानी है....
कभी खुशियों की बरसात,
तो कभी गम की सूखी चादर....
सुख-दुख के इस मेल-मिलाप को वर्षों तक चलानी है
दो पल के इस जीवन से एक लम्बी उम्र चुरानी है।।



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12 JUL 2021 AT 18:25

काश मैं "परिंदा" होती
हवाओं से गुफ्तगू करती
काश मैं "मवेशी" होती
अपनी ही धुन में मग्न रहती
काश मैं "भोर की लालिमा" होती
आँखो को वास्तविक सौंदर्य का परिचय देती
काश मैं "हरि की बांसुरी" होती
ब्रजरानी की कानों में रस घोलती।।

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6 JUL 2021 AT 11:09


दुनिया को आईना बनाओगे तो ,
खुद को कभी बेदाग ना पाओगे....
चल के देखो कभी अकेले भी,
भीड़ में तो कुचले ही जाओगे....
क्यूँ बनना है तुम्हें औरो की तरह,
कभी खुद से स्पर्धा कर के देखो
हर क्षण खुद को बेहतर ही पाओगे ।।

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