समस्या बस इतनी सी थी,
की यूंही जीने और जीने में फर्क समझ लिया।
जीना था उन्हें तो लगा पहली सीढ़ी पर ही मिल जाता होगा खुला आसमान।
समझा मानो नदियों से बहता पानी ले जायेगा स्वर्ग की ओर।
ख्याल किया कहानियां बन जाएंगी हकीकत और हकीकत सिर्फ एक कहानी।
शिखर आज़ादी होगी और भोर की पहली किरण एक आशा जो छड़िक भर में पूरे संसार में घर कर जाती है।
अपरिचित रह गए आसमान में उठने वाले भयानक बिजली, वर्षा और तूफान से।
उन चट्टानों से जो रूकावटे हैं लहरों की।
जाना तो समझा, जीना तो एक संघर्ष है, एक ऐसा संघर्ष जिसकी मंज़िल है परितोष।।
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