नेक व्यक्ति स्वार्थ भरा पग-पग चला ,
सुखमय जीवन उसे भला कहां मिला ।
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आईने की तरह कोरे कागज पर,
फिर जमाना चाहें उन्हें......... ही
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हर तरफ तमाशबीन है हर कोई।
मंजिलें समीप थी तलाशा न कोई ,
भीड़ में अकेला ही पाया हर कोई ।
आँखों से बहता नीर पोंछा न कोई ,
मौन चीखता रहा पर सुना न कोई।-
जब खामोश घरों में ,
अपनों को चीख सुनाई न देती हो।
शायद इसे ही कहते हैं ,
वक्त खराब और इंसान का बदल जाना।-
"हाल"
महलों की हसी रौनक छोड़कर,
कभी उन मलिन बस्तियों को देखो।
एक रोटी के लिए जद्दोजहद करते,
कभी करीब से,उन गरीबों को देखो।
हर टूटते सपने की किरच संभालते,
कभी मासूम आँखों के अश्क को देखो।
अपनों की खातिर तन-मन तपा दिया ,
कभी उस माँ का हाल ऐ दिल को देखो।
मुश्किल नहीं थे अमीरी के शौक जनाब
कभी जमीं पे तड़पती जिंदगी को देखो।-
तेरी जिंदगी का सौदागर यूं वक्त बन गया ,
देख तेरे हर लम्हे का मोलभाव कर गया।-
दहलीज पर था बारिश का पहरा ।
दिन चाय-पकौड़े में गुजार दिया ,
रात पर था तेरी यादों का सेहरा।-
स्त्री जीवन
सालों तक स्वयं को तोड़ती है
पीसती उस ओखल की भाँति ,
तब जाकर कुछ मसाले बनते हैं
फिर लगाती है ताउम्र का तड़का ,
तब जीवन एक स्वादिष्ट व्यंजन बनता है
सालों बाद यही समाज उपेक्षा कर देता है
कि वह भोजन मनमुताबिक नहीं है।
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सुना है आज रात जुगनुओं की महफ़िल सजेगी ,
चले जाना उस महफ़िल में तुम भी ,
कोई अपना कोई पराया मिलेगा।
उधेड़ देना अपने जज्बातों को ,
बिखरे देना टूटे हृदय की कलियां
क्या पता फिर कोई चाँद रोशन करे दिल तेरा।
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अब तेरी उम्र को मैं क्या तख़ल्लुस देता !
जब मेरा आईना ही तेरा तक़ल्लुफ करता है!!
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