प्रेममय हो , प्रेम पर लिखी कविता हो "तुम"
विरहमय हो , प्रेम पर लिखी कविता हूँ "मैं"।-
रणथल में लिए तलवार चली
झांसी की बन ललकार चली
आभूषण में न वो बंधी कभी
आज़ाद अश्व पर सवार चली
झांसी की बन ललकार चली।
जब मर्दानों की यलगारों से
भयभीत न कोई अंग्रेज़ हुए
तब सिंह स्वरों से लक्ष्मी के
सब कांप गए जो चंगेज़ हुए
अपनी धरती अपना भारत
न देने को थी वो तैयार ज़रा
फिर गोद लिए नन्हा बालक
बेख़ौफ़ लड़ी कतरा -कतरा
भूमि से भक्ति निभाने को
करती वो प्रचंड प्रहार चली
झांसी की बन ललकार चली।
समय सियाही (शर्मा तनु)
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किन्तु प्रिये!
क्यूँ प्रतीत होता है
मानो तुम्हारे नेत्रों में नर्मदे स्थैर्य ला,
अपना प्रवाह विस्मृत कर चुकी है?
क्यूँ केशों के खुले होने पर भी
बंधन में कर लिया है
आकाश का आसमानी अंधियारा?
क्यूँ मुस्कुराते ओष्ठों के मध्य
खंडित है तुम्हारी अभिनय मुस्कान?
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ये कह कर उन्होनें महफ़िल नही होने दी बंद, कि
वो आये नही हैं अभी पर वो अभी आने बाकी हैं।
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करधनी में बांध ली हैं तुमने
मेरे देह की समस्त नाड़ियाँ
और कंठ में पड़े मुक्ते में भरा है
मेरा प्रेममलिन रक्त।
अब प्रतीक्षा में हूँ मैं तुम्हारे आगमन के
जब खोल सकूँ उन आभूषणों संग
अपने रक्तचाप की गति तुमसे।
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वह प्रेमिकाएं जो ग्रहण कर लेती हैं
प्रेमियों के अलंकारिक अनुवाद,
उनकी कोमल पर्वतीय बर्फ़ सी तारीफें,
उनका शाब्दिक समर्पण
और चित्रित कर लेती हैं उन्हें मुराद बख्श सा
जिसके साथ वो कल्पनामय हो नापती हैं
सिर्फ तख़्त हज़ारा की ओर ले जाती भूमि,
वो बहक जाती हैं उन स्वांसों से
जो उन्हें आश्वस्त कराता है
एक कवितामय जीवन देना।
यह जानते हुए भी
की ये अनुवादित वाक्य व व्यवहार
मात्र संवाद प्रखरता है सत्यता नहीं
फिर भी वो उन्हें आत्मिक स्वीकृति देती हैं ,
वो प्रेम की ग्रीष्म ऋतु को शांति की शीत ऋतु के ऊपर रख
आवेदित करती हैं जीवन में,
आभास करते हुए की इस ऋतु के गुज़रते ही
उनके हरित ह्रदय की भावनाएं शाखाओं से झड़ ही जानी हैं
और स्वीकार लेती हैं उन्हें ज्यों का त्यों
वह प्रेमिकायें स्वयं प्रेम होती हैं
वह योद्धा हो सकती थीं
उस असत्यता को अस्वीकृति दे समाप्त करते हुए
पर वो प्रयास करती हैं उस प्रपंच को
प्रेम में परिवर्तित करने का।
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मैं लिखूंगी तुम्हे एक पत्र
अपने उस स्वप्न से
जो अनुवादित नही हैं,
वो कल्पनाएं भी नही हैं
वो यथार्थ हैं मेरा।
क्या इंतज़ार करोगे
तुम मेरे उस पत्र का
अपने स्थाई पते पर?
या वो पत्र तुम्हारे स्थाई पते की
पत्र पेटी में वर्षो तक
पड़ा रहेगा,
इंतज़ार में तुम्हारी?
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