देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ
हर वक्त मेरे साथ है उलझा हुआ सा कुछ
होता है यूं भी रास्ता खुलता नहीं कहीं
जंगल सा फ़ैल जाता है खोया हुआ सा कुछ
साहिल की गीली रेत पे बच्चों के खेल सा
हर लम्हा मुझमें बनता बिखरता हुआ सा कुछ
फुरसत ने आज घर को सजाया कुछ इस तरह
हर शय से मुस्कुराता है रोता हुआ सा कुछ ।-
{A good writing is like a windowpane!}
लहू के थे जो रिश्ते उन्हें छोड़ के आ गये
सुकून आंखों के सामने था मुंह मोड़ के आ गये
ख़ज़ाने लुट रहे थे मां बाप की छांव में
हम कौड़ियों की खातिर घर छोड़ के आ गये।-
सियासत किस हुनर मंदी से सच्चाई छुपाती है
जैसे सिसकियों का जख्म शहनाई छुपाती है
जो इसकी तह में जाता है वो फिर नहीं आता
नदी हर तैरने वाले से गहराई छुपाती है।-
बंद दरीचे सूनी गलियां अनदेखे अनजाने लोग
किस नगरी में आ निकले हैं हम जैसे दीवाने लोग
एक हमीं न वाकिफ ठहरे रुप नगर की गलियों से
भेष बदलकर मिलने वाले सब जाने पहचाने लोग।
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वो मेरे घर नहीं आता मैं उसके घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से ताल्लुक मर नहीं जाता
बुरे अच्छे हों जैसे भी हों सब रिश्ते यहीं के हैं
किसी को साथ दुनिया से कोई लेकर नहीं जाता
खुले थे शहर में सौ दर मगर इक हद के अन्दर ही
कहां जाता अगर मैं लौट के फिर घर नहीं जाता।-
परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है
ज़मीं पर बैठ के क्या आसमान देखता है
यही वो शहर जो मेरे लबों से बोलता था
यही वो शहर जो मेरी ज़बान देखता है ।
~शकील आज़मी
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परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फासला रखना
जहां दरिया समन्दर से मिला दरिया नहीं रहता।-
मुझपे हैं सैकड़ों इल्ज़ाम मेरे साथ न चल
तू भी हो जाएगा बदनाम मेरे साथ न चल
तू नई सुबह के सूरज की है उजली सी किरन
मैं हूं इक धूल भरी शाम मेरे साथ न चल।-
नजदीकियों में दूर का मंजर तलाश कर
जो हाथ में नहीं है वो पत्थर तलाश कर
सूरज के इर्द गिर्द भटकने से क्या फायदा
दरिया हुआ है गुम तो समन्दर तलाश कर।
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कर लूंगा जमा दौलत-ओ-जर उसके बाद क्या ?
ले लूंगा शानदार सा घर उसके बाद क्या ?
वक्त आएगा तो सारे जहां की करूंगा सैर
दुनिया में होगा नाम मगर उसके बाद क्या ?
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