Tanmay Binjrajka  
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Joined 23 September 2017


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Joined 23 September 2017
23 MAR AT 1:38

हर जाम आज , हर काम कल,
रिहाई गिडगिडाएँ रूह गिरफ़्त कहीं !

आदतें पुरानी दोहरा सुकून ढूंढता, पर,
पुरानी वक़्त की हर बात इस वक़्त नहीं!

जौहरी ठहरे सब, मिलते ही कीमत लगा दी ,
गज़ब दौर की अदब नहीं कहीं !

खुद-परस्ती में मधहोश, बस चाहिए ,
मक़सद हो जहाँ मोहब्बत मिलती नहीं !

बेवक़्त मिली फुर्सत तुझे 'तंज़' ,
तड़पती तन्हाई छुपाये सुरूर कहीं!

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21 MAR AT 1:46

दिल के अंदर कई दफा दबा के रखा इश्क़ अपना ,
बदनाम न हुआ मैं , पर निलाम हुआ इश्क़ अपना !

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9 MAR AT 13:59

इंतेहाँ हो गयीं इंतजार क़ी ,
फ़िर उस बात कि , उस रात की !

पहली दफा ही फ़ितूर चढ़ा कुछ यूँ की ,
सो गयी नींद मेरी, याद आयी जब यार की !

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8 FEB AT 13:43

यकीं नहीं होता की वो सफर ख़त्म हो गया,
मानो जैसे कल की ही बात थी|
थी दुनिया अपनी छोटी , हसीं से गूंजती हर रात थी|

जो चाहा वो मिल तो गया , पर ,
जो खोया ये उसकी बात थी|

अब 2 अश्क बहें तो बह जाएँ उनके नाम ,
था रिस्ता जो बस नाम से अज़नबी ,
पर उसमें खून सी औकात थी|

मानो जैसे कल की ही बात थी|

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12 JAN AT 14:20

इस शहर में तेरी यादें हैं कितनी,
की नज़ारे कितने पर तेरा चेहरा ही दिखता।

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7 JAN AT 19:08

हर बार हुई तो क्या खास हुई?
खुशी नहीं हर लम्हे कज बात हुई।

खूबसूरती आम है, अगर पास है,
मशक्क़त है जिसमे, वो इनाम हुई।

बेफ़िरे चल पड़े आरज़ू की ओर,
ज़िंदगी नाम इसीका, फिर क्यों बदनाम हुई।

हर बार हुई तो क्या खास हुई?
खुशी नहीं हर लम्हे कज बात हुई।



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3 JAN AT 1:03

दरिया झूमते, सफर-ए-मदहोश में,
समंदर-ए-आम हो जाता है।
रूह डरती उसे खोने से,
ख़ास मुझे जो बनाता है।

सहमी बेचैन आँखें धुंधली हो जाती हैं,
रोशनी बाहर से तब खुदगर्ज़ी ही लाती है।

बंद मुट्ठी ने जकड़ी किस्मत की लकीरें,
बेकार ही पकड़ी थी मैंने कितनी जंजीरें।

नज़रिए बेख़ौफ़ ने एक पल में फिर ख़ास कर दिया,
झूमती लहरें भी, समंदर गहरी भी,
दरिया ने ख़ुद को माफ़ कर दिया।

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23 OCT 2023 AT 10:44

मेरे ज़ेहन को इल्म न थी मेरी ही चाहत की,
दुआ निकली थी रूह से, खुदा की, इबादत की।

गेहरी, पाक ख्वाइशें मेरी कुछ इस तरह मुक़म्मल हुई,
की मुझे इल्म भी न हुई, मेरी ही राहत की।

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19 SEP 2023 AT 13:10

आँखों से तेरी मैं कुछ पढ़ नही पाया,
ख़ामोश वक़्त भरने बस उगलता चला, गाया।

असल में ख़ामोशी है सुकून मेरा,
पर उस दौर में तूने मुझे तड़पता पाया।

शुक्रगुज़ार, की उस वक़्त मुझे रोका तूने,
बेवफ़ा नहीं, बेचैन था, होश मोड़ा तूने।

एक और बात, गिर गया था मैं लब्जों को लिबाज़ पहनाने में,
हुस्न-ए-अंदाज़ बिखर गया था तेरा, इस दीवाने में।


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15 SEP 2023 AT 18:10

मेरे सपने में मुझे एक सपना आया,
की उठ के भी मैं उठ नही पाया।

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