तुम पृथ्वी,
मेरा प्रेम
तुम्हारी धुरी में फंसा
चंद्रमा।-
Life is not about complaining for things u havnt got..its about cherishing everything u hv
-
उसने कहा तुम पुल थे
मुझे इस किनारे तक पहुंचाता।
प्रारब्ध यही है पुल का
बस रस्ता बन जाना
गंतव्य, किनारे या प्रतीक्ष उन पर दो लोग नहीं।
यह सुनकर अप्रासंगिक सा पुल टूट गया।
मान लिया था उसने भी
साधन ही था एक वस्तुमात्र
यही नियति थी उसकी
दूर खड़े दो लोगों को
एक दूजे तक पहुंचाना।
-
एक तुम्हारा बचपन
जो सालों गुमशुदा रहकर भी जवानी में
स्टोररूम के अंधेरे कोने में
प्राइमरी से हाइयर सेकंडरी तक की घुन चाटती किताबों के बावजूद तुम्हे नॉस्टैल्जिक बना देता है।
दूसरा तुम्हारा यौवन जो ढलती उम्र में भी
फेनॉफ्थलीन की गोलियों में
सालों लिपटे स्वेटर की तरह
हर सर्दी में नई गर्मी दे जाता है।
ये दोनों ही दरसअल 'आज से मुहचोर हुए तुम' के सबसे करीबी आसरे हैं।
ये दोनों दोषी हैं तुमसे तुम्हारा आज छीनने के
और तीसरे तुम,
इनमें मुंह छुपाए जो ये भूल जाता है
कि दोनों के ख़त्म होने के बाद भी जीवन है
और एक ही है।-
तुम मुझे फिर मिलना
गतियों, प्रवाहों के परे
उस विराम उस बिंदु पर
जहां जीवन-मृत्यु, अस्तित्व-अनस्तित्व
एक दूसरे से गुंथ जाते हों
और समय जम जाता हो बर्फ की तरह।
तुम मेरे गीतों की श्रुतियां बनना
भाव मेरी कविताओं का, और मैं
बनूंगा तुम्हारे सभी स्वप्नों का आधार
तुम्हारी हर बात का विचार।
हम बनेंगे दो रंग और हर अनुपात में मिलकर
हर रंग रचेंगे सृष्टि का।
तुम मुझे फिर मिलना
क्योंकि तुम्हीं ने कहा था
कि सृष्टि के वो हर दो अस्तित्व
जो पूर्ण करते हों एक दूसरे को
उन्हें मिलना ही है
और इसलिए मिलेंगे हम भी
गतियों, प्रवाहों के परे
उस विराम उस बिंदु पर..-
मेरा मन
जाम सिटकनी
तेरा ज़िक्र
जाम छुड़ाता तेल
मेरी आस
दो सिरों पे बिखरी
तेरा साथ
सिरे जोड़ती रेल
मेरी देह
कोई वृक्ष अकेला
तेरी खुशबू
उसमें लिपटी बेल
मेरा जीवन
कोन अखबारी
तेरा प्रेम
कोन में भरती भेल।
-
तुम मुझे फिर मिलना
गतियों, प्रवाहों के परे
उस विराम उस बिंदु पर
जहां जीवन-मृत्यु, अस्तित्व-अनस्तित्व
एक दूसरे से गुंथ जाते हों
और समय जम जाता हो हिमनद की तरह
तुम मेरे गीतों की श्रुतियां बनना
भाव मेरी कविताओं का, और मैं
बनूंगा तुम्हारे सभी स्वप्नों का आधार
तुम्हारी हर बात का विचार
हम बनेंगे दो रंग और हर अनुपात में मिलकर
हर रंग रचेंगे सृष्टि का
तुम मुझे फिर मिलना
क्योंकि तुम्हीं ने कहा था
कि सृष्टि के वो हर दो अस्तित्व
जो पूर्ण करते हों एक दूसरे को
उन्हें मिलना ही है
और इसलिए मिलेंगे हम भी
गतियों, प्रवाहों के परे
उस विराम उस बिंदु पर
-
तुमसे बद्ध होना मुक्त होना है
स्व से, संसार से
इच्छा के कारोबार से
तुमसे बिछड़ना युक्त होना है
अवसाद से, संताप से
पीड़ा के पारावार से-
तुम कहती हो
प्रेम सिर्फ पाना ही नहीं
मैं समझता हूं
खोना भी नहीं है प्रेम
पाने की उस आस को
जिसकी आयु कई जन्मों लंबी हो-
तुम जो कहती रंग तो मैं
संसार के सारे इंद्रधनुष तुम्हें सौंप देता।
तुम जो कहती सुगंध तो मैं
पहली बारिशों का सारा सौंधापन
चुपके से तुम्हारी हथेली पे रख देता।
पर तुमने कह दिया विदा,
चुना उस प्रथम वृक्ष की छांव को
और मैं, 'तुम' होकर
चल पड़ा क्षितिज के पार,
फिर कभी नज़र ना आने को।
-