समझ नहीं थी तो कुछ भी लिख देता था
समझ आई तो कुछ भी नहीं लिख पा रहा-
I have my own cosmos
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एक और दिन खो गया
अभी सुबह थी - अभी शाम
अब फिर से बज गया अलाराम
जाने कहां गया वो दिन?
जाने कहां गई वो शाम?
एक और दिन हो गया गुमनाम
अब एक नया सवेरा आया है
कौन जाने नया ही है…
या वही खोया हुआ दिन दोहराया है
देखते देखते ये सूर्य भी अस्त होने को आया है
एक और दिन खो गया
कब सूर्य उदय हुआ...
और न जाने कब अस्त हो गया-
(Morning :: A suicide bomber :: Mirror) (in caption)
आज जाना है
आज आना है
है आज भी वही उलझन
दिन कि शुरुआत कैसे करूं
नहा कर जाऊं
या जा कर नहाऊं
या कोई ये करम मेरे जाने के बाद कर ही देगा
सोचेगा कि जा रहा है ये रब के पास
करदे इसको आखिरी बार पाक…
रब के घर ही तो आना है मुझे
उन्होने ही तो अपनाना है मुझे-
Celebrating 77 years of independence
In the nation of spice,
The Tajmahal has a sweet essence-
Laying down, gazing at the sky
Upar rang-birange taare timtimaye
Lost in thoughts, looking for a 'why'
Mere hi vichar mujhko sataye
I wish I could hear nature's reply
Ye soch meri ab ruk na paye
What could nature say... go fly high?
Aasman tatolne ko lalchaye-
सुध बुध नहीं, ना ही कोई होश
मगन है वो, वीणा कि धुन में मदहोश
जप रही है हरी का नाम
कृष्ण-कान्हा-घंश्याम…
सुख दुःख से परे वो आ बैठी
जीवन-मरण के बीच बैठी
कोई समझे बावरी
कोई सोचे इक मूरत पर ऐठीं
वो बावरी
उस मूरत को
अपने प्राण दे बैठी-