Focus only on the good stuff they say. But I say, it's not at all practical. Instead, Focus on both the good and the BAD stuff, and then sort your thoughts out.
अनजानों कि भीड़ में, यूँ चलते चले गए, नए चेहरों से भी मुलाकात हुई, कुछ अपने मिलते चले गए। राहें तो कई थीं, राह में हमारे, निगाहों में सपने भी कई थे,पर पुराने छोड़ हम नये बुनते चले गए। कुछ करना नया था, मगर हम यूं ही इस ज़िन्दगी में घुलते चले गए। ...मगर हम यूं ही इस ज़िन्दगी में घुलते चले गए...
Feeling lost? suffocated? Just start following a 'LINE'. But what if it leads towards a dead end? You can always come back. Remember, you can always 'COMEBACK' to the starting point. RELAX...Restart...Reconnect...Recheck... You'll be able to find the answer, don't worry.
सर्द सुबह में निकल पड़े हम, पक्षियों संग गुनगुनाने। आग तापते हाथों को देख, लगे मन को थे बहलाने। कुछ लोग मिले जो लड़ रहे थे, मौसम की ठंडी हवाओं से। और कुछ लोग मिले जो हंस रहे थे, हवाओं संग इन मैदानों में। सूरज भी शायद सो रहा था, बादलों की चादर ओढ़ कर। झांका फिर धीरे से कोई परछाइयों का रुख मोड़ कर। मचा शोर फिर गलियों में भी, जब निकला सूरज घर अपना छोड़कर।