Tanish Nama   (©Tanish nama)
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busy but always available in health and medicine issues🧑🏻‍⚕️💉
Pharmacy
Joined 16 February 2021


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26 JUN AT 12:16

“Zindagi tabhi gulzar lagti hai,
Jab koi dil se saath nibhata hai…
Na shikayat, na शर्त… बस एक साथ — हर मौसम में।”

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10 JUN AT 16:08

"उसके ना मिलने का मलाल तो रहेगा,
हर हँसी में, हर तन्हा ख्याल में वो सवाल तो रहेगा।
मैंने खुद को बार-बार समझाया है,
मगर दिल है... यह कब किसी की सुनता है?
और इस भीड़ भरी दुनिया में,
क्या वाकई मैं उस एक शख्स का भी हक़दार नहीं था?
ये ख़्याल उम्र भर मेरे साथ रहेगा।"

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3 JUN AT 10:27

"बुढ़ापे का सहारा"

लोग कहते हैं बेटा बुढ़ापे का सहारा होता है...
मगर सच्चाई ये है —
बेटा अक्सर जिम्मेदारियों में उलझ जाता है…
घर से दूर, काम में बिज़ी,
कभी-कभी तो अपनी ही माँ-बाप को भूल जाता है।

लेकिन एक बहू…
अगर समझने वाली हो,
तो वो ना सिर्फ बेटे की कमी पूरी करती है,
बल्कि माँ-बाप को फिर से जीने की वजह देती है।

दवाओं से लेकर —
हर चीज़ का ख्याल रखती है वो।

बेटे का प्यार ज़रूरी है…
पर बहू का सम्मान, सेवा और ममता —
बुढ़ापे को ख़ुशहाल बनाती है।

सच तो यही है…
वृद्ध माँ-बाप के बुढ़ापे का सहारा…
एक अच्छी बहू होती है… ना कि सिर्फ पुत्र।"

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2 JUN AT 20:19

"उजाले और अंधेरे की दास्तान..."

कमाल की बात है ना...
उजाला अक्सर दर्द दे जाता है,
और अंधेरा... अंधेरा सुकून दे जाता है।

उजाला — बस एक मेहमान है खुशी का,
जो आता है, और चला भी जाता है...
मगर अंधेरा — वो तो साथी है दुख का,
जो चुपचाप हमारे पास बैठा रहता है,
बिना किसी शोर, बिना किसी दिखावे के।

उजाले में हम सबके साथ होते हैं,
और अंधेरे में... सिर्फ़ हम होते हैं।

उजाला सबका वफादार है,
मगर अंधेरा — वो सिर्फ़ हमसे इश्क करता है।

उजाला झूठ होकर भी सच्चा सा लगता है,
और अंधेरा, सच्चा होकर भी... झूठा समझा जाता है।

अक्सर वो अंधेरा,
हर पल हमारी वफ़ादारी का सबूत देता है —
मगर हम उसी के डर से,
ज़िंदगी भर उजाले को ढूंढते रह जाते हैं।

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30 MAY AT 20:59

"ख़ुद से ख़फ़ा..."

कुछ दिनों से ख़ुद से ख़फ़ा सा बैठा हूँ,
मैं अपनी ज़िन्दगी का तमाशा बनाकर बैठा हूँ।

ना कोई सवाल करता है, ना जवाब देता हूँ,
अब दिल के दरमियान मैं सन्नाटा रखकर बैठा हूँ।

जिससे रोशनी की थी उम्मीद हर मोड़ पर,
उसी चिराग़ को आज बुझाकर बैठा हूँ।

नक़ाब ओढ़े हुए हैं सब रिश्तों की भीड़ में,
मैं अपनी ही आँखों को छलाकर बैठा हूँ।

जो कभी था मेरा, वो अब अजनबी सा लगता है,
उसकी यादों को भी अब दूर रखकर बैठा हूँ।

वो चीख़ भी अब लफ़्ज़ों तक नहीं आती,
मैं अपने ही दर्द को मुस्कान बनाकर बैठा हूँ।

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5 MAY AT 20:41

"कौन?"

मैं रूठा, तू भी ख़ामोश रही —
फिर इस सन्नाटे को तोड़ेगा कौन?

आज हल्की सी दरार है,
कल कोई गहरी खाई बन गई —
फिर हाथ थाम कर निकालेगा कौन?

मैं चुप, तू भी चुप —
इन अनकही बातों को समझेगा कौन?

हर बात दिल पर लोगे,
तो इस नाज़ुक से रिश्ते को बचाएगा कौन?

ना मैं झुका, ना तू मानी —
तो फिर माफ़ी का पहला क़दम बढ़ाएगा कौन?

ज़िंदगी हर रोज़ मौक़ा नहीं देती,
कल को अगर कोई एक ना रहा —
तो फिर पछतावे की आग में जलेगा कौन?

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4 MAY AT 14:39

"कभी सोचता हूँ..."

क्या तुम जानती हो?
कि तुम्हारे आने से
ज़िंदगी ने फिर से साँस लेना शुरू किया है।

तुम्हारी वो एक नज़र,
जैसे किसी थमी हुई धड़कन को धक्का दे दे,
तुम्हारी वो हल्की सी मुस्कान,
जैसे बरसों से वीरान पड़े दिल में बहार आ जाए।

जो मैं भूल चुका था कि
प्यार भी कोई चीज़ होती है—
तुमने आकर मुझे फिर से महसूस करवाया।

तुम आई तो लगा,
जैसे अधूरी कहानी को आख़िरकार उसका अंत मिल गया।
तुम आई तो हर टूटे ख्वाब ने फिर से आँखों में जगह मांगी।

कभी पूछना खुद से,
क्या तुम जानती हो कि
तुम्हारा होना ही मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी ख़ुशबू है?

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30 APR AT 16:02

किसी को मोहब्बत में चाँद मिल गया,
किसी को बस चाँदनी की परछाई मिली।

हम सबसे सच्चे थे अपने इश्क़ में,
तो हमें बदले में सिर्फ तन्हाई मिली।

तेरे नाम पर लोग महफ़िलें सजाते रहे,
हमने तेरा नाम लेकर चुपचाप ज़हर पी लिया।

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26 APR AT 16:41

शायद इसीलिए,
मैं पैसे की क़ीमत जानता हूँ —
क्योंकि मैंने अपनी दादी की मेहनत की क़ीमत देखी है।
उनकी कड़ी धूप में तपती हथेलियों से
मैंने सीखा है —
इज़्जत सिर्फ इंसान की नहीं, मेहनत की भी करनी चाहिए।

दुनिया के लिए पिता बड़ा होता होगा,
पर मेरी दुनिया तो मेरी दादी के आँचल में बसती थी।
उन्होंने मुझे पाला,
संवारा,
सींचा,
और बिना किसी शर्त के प्यार किया।

आज भी जब कभी थक जाता हूँ,
तो दादी की यादों का आँचल ओढ़ लेता हूँ।
और फिर लगता है —
मैं आज भी उनकी बाहों में सबसे महफूज हूँ।

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26 APR AT 16:36

"मेरी दादी"

लोग कहते हैं,
“पिता घर की नींव होते हैं,
उनके कंधों पर पूरा घर टिका होता है…”
पर मेरे लिए तो,
मेरी दादी ही मेरा पूरा आसमान थीं।

मैंने उन्हें देखा है,
तेज़ धूप में मेहनत करते हुए,
अपने पुराने, घिसे हुए कपड़ों में
चुपचाप पसीना बहाते हुए।

वो पैसे बचाती थीं —
अपने सपनों के लिए नहीं,
हमारे सपनों के लिए।

जब भी कोई सिक्का उनके हाथ से
निकलता था, तो उसमें उनकी मेहनत
की तपिश होती थी, उनकी दुआओं की
ख़ुशबू होती थी।

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