लूटा है आशियाना पर जिंदा हूँ मैं ,
अपने हालातों से शर्मिंदा हूँ मैं ,
है तेरी ग़र ये औकात ,
झुलसी इन आँखों में झांक,
मेरा भी था आशियाना,
थोड़ा सा खज़ाना था मुझे भी लूटाना ..
जब ग़ुरूर टूटा तो पाया ,
आसमां की छत के नीचे,
दुनिया का बाशिंदा हूँ मैं ..
पास सम्भाले पत्ता था पीपल,
झड़ के वो जाली हो गया
बनाया था जो आशियाना,
टूट कर अब वो खाली हो गया ..
अब जो लूटा ,सबकुछ मैं खाली
खुद को पा के हरियाली हो गया..
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