जिस्म की नुमाईश पर वाह-वाह, रूहानी इश्क़ से इनकार है,
यहां जज़बातों की बेक़दरी, और हर तरफ़ अंधेरा है।
मशरूफ़ है लोग कमाने ग़ुनाह, नेकी का मतलब पूछते है,
पैसो की इबादत करने लगे सब, पर भूल गए, ख़ुदा तू है।।-
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उदास सी है आँखें उनकी, लहज़ा ज़रा गरम है,
कठिन सी है सूरत उनकी, रूह में हज़ार ज़ख़्म है।।-
हाँ याद हैं।
याद है वो डूबता सूरज, उसके रंग में रंग जाना,
अंजानी उन राहों में यू तेरा हाथ थामे चले जाना।
याद है वो पहला पल, जब तूने मुझे छुआ था,
सांसें मानो रुक सी गयी, कुछ तो दिल मे हुआ था।
पहली दफ़ा छुआ जब मेरे होंठो को तेरे लबो ने,
छेड़ दिया तेरी सांसों को तब, मेरी बढ़ती सांसों ने।
रोक लिया मेरे हाथों ने, तेरी बढ़ती हाथों को,
ढूंड लिया तेरे होंठो ने फिर झुकीं हुई मेरी नज़रों को।
याद है वो चुप्पी तेरी, मेरे ज़ुल्फ़ों से यू खेलना,
मासूमी से हँसते हुए, मेरे सारे नख़रे झेलना।
रातों को जब डरती थी मैं, अपने में समा लेता था,
थोड़ी सी मायूसी को भी, मेरे पास न आने देता था।
हाँ याद है तेरी मौजूदगी, तुझसे जुड़ी हर बात भी,
याद है मुझे तेरा प्यार, रहेगा सदियों बाद भी।।-
कभी कभी नाराज़ होती हूँ तुमसे,
सोचती हूँ इस दफ़ा माफ़ नहीं करूंगी,
कभी बात नहीं करूंगी
कभी मुड़कर भी नहीं देखुंगी।
और ये नाराज़गी तब तक रहती है
जब तक सिर सजदे में न झुकता हो।
जिस पल ये माथा सजदे में झुकता है
दिल तेरे होने पे गवाही देता है,
ख़ुदा से तेरी सलामती और साथ मांगता है।।
तेरे बगैर नामुमकिन सा है सब कुछ,
न दिल दुरुस्त है, न सांस आती है;
क्या करूँ इस मोहब्बत का मैं,
न जीने देती है, न ठीक से तबाह करती है।।-
लोग अक्सर कहते है
"कोई बात नहीं, तुम्हें और बेहतर कोई मिल जाएगा।।"
पर इन्हें कौन समझाएं की किसीको टूटकर चाहने के बाद
किसी और को चाहना तो दूर, कोई पसन्द भी नहीं आता।।-
दिल दुखाने का हुनर मुझमेँ भी है बेशक,
पर दिल कमबख़्त इश्क़ का मारा है।।-
दिल, भरोसा, उम्मीद, चुप्पी सब टूट गए वक़्त के साथ,
बस एक सब्र है जो टूटने का नाम ही नहीं लेता;
सही, गलत सब धुंधला सा लगने लगा है अब,
और एक बेकली है जो सांस लेने नहीं देता।।-
मेरे कमीज़ की सिलवटों में लिपटी तेरी महक को,
तह करके अलमारी में कैद कर दिया है;
अलमारी का वो कोना आज से बस तेरा हुआ,
न उसमे झाकेंगे हम, न कभी खोलकर देखेंगे।
बस बदले में तू इतना बता दे मुझे
के मेरे रूह में उतरी हुई तेरी आहट,
मेरे ज़ुल्फ़ों में लिपटी हुई तेरे उंगलियों के निशान,
मेरे माथे पर तेरे होठों से सजाये हुए सुकून के लम्हें,
मेरे बन्द और खुली आँखों के सामने झलकता हुआ तेरा चेहरा
इन्हें कहाँ कैद करु के आज़ाद कर पाऊ तुझे मेरी मोहब्बत के बोझ से!!
क्यों कि लाज़मी है गर ये आज़ाद रहेंगे
तो मेरा दिल तेरे साथ होने को गवाही मांगेगा,
और मेरी मोहब्बत पर सिर्फ़ तेरा हक़ होगा
जिस मोहब्बत से तु आज़ाद होना चाहता है।।-
किसी रोज़ मिलना है तुझसे फिर,
किसी समन्दर किनारे रेत का किला बनाना है,
उन लहरों से थोड़ी दूर, ताकी तुरंत बह न जाएं।।
फिर उस किले के पास बैठकर सुकून से
डूबता सूरज देखना है तेरे कंधे पे सिर रख कर;
शायद आखरी दफ़ा, मगर वो लम्हा जीना चाहती हूँ मैं।।
बस एक अर्ज़ी है तुझसे,
अबकिबार थोड़ा वक्त लेके आना,
और उन लम्हों में तू बस मेरा ही रहना;
मुझे पूरा हक़ देना की मैं तुझे अपना मानु,
कभी आना, और कुछ ऐसे लम्हें दे जाना।।-
मनाने का मन नही है अब,
पर तुझे खोने से डरती भी हूं;
कभी लगे चाहती नहीं हु तुझे मैं अब,
तो कभी लगे, बेइंतेहा मोहब्बत करती हूं।।-