वो जो हमसे आज ख़फ़ा है,था कल तक हमपे इतरा रहा।
उसे खुद से शिकायत है, में तो बस आइना दिखा रहा।
उसी का सबक दोहराया है मैने।
वो क्यों आज खुद से शर्मा रहा।
उसकी ख़ामोशी को में क्या समझूं।
वो झपटेगा मुझपे या घबरा रहा।
थे जब तलक हम रहबर तब तक।
खुद को था काबिल बतला रहा।
जो हम मुक़ाबिल पर आ गये।
सही और गलत फिर से समझा रहा।
गलत तो गलत ही रहेगा हमेशा ।
खुद पे गुजरी तो क्यों ना अपना रहा।
वो मुझको बना कर कामिल खुदसा।
देखो तो कितना पछता रहा।
-