वो जो हमसे आज ख़फ़ा है,था कल तक हमपे इतरा रहा।
उसे खुद से शिकायत है, में तो बस आइना दिखा रहा।
उसी का सबक दोहराया है मैने।
वो क्यों आज खुद से शर्मा रहा।
उसकी ख़ामोशी को में क्या समझूं।
वो झपटेगा मुझपे या घबरा रहा।
थे जब तलक हम रहबर तब तक।
खुद को था काबिल बतला रहा।
जो हम मुक़ाबिल पर आ गये।
सही और गलत फिर से समझा रहा।
गलत तो गलत ही रहेगा हमेशा ।
खुद पे गुजरी तो क्यों ना अपना रहा।
वो मुझको बना कर कामिल खुदसा।
देखो तो कितना पछता रहा।-
फ़ोन काट दिया और कोई जवाब भी नहीं ।
अब तेरा मेरा कोई हिसाब भी नहीं।
ले मिटा दी तेरी सारी बातें ।
ना तेरा गुनाहगार और कोई सवाब भी नहीं।
तेरे मेहताब में गुजारी सारी रातें।
मगर अब तुझमें वो आफताब भी नहीं ।
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लहज़ा नर्म।
मिजाज़ सख्त होता हैं।
अब मेरे हिस्से के जवाब
वक्त देता है।-
How I invite her
अभी इस अंधेरे को और छाने दो।
टंगे हुए तारों को टिमटिमाने दो।
एक चांद भी रोशन हो जाने दो।
मखमली ख्वाब में सबको सो जाने दो।
फ़िर आजाना मेरे पास ।
और अपनी बाहों में मुझे सो जाने दो।
दुनिया भुला सब खो जाने दो।
दो जिस्मो को एक जान हो जाने दो।
रूह को आपस में खो जाने दो।
हिज़्र का वक्त भी गुजर जाने दो।
मुझसे मिलकर मुझे सवर जाने दो।
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रिश्तों के मामलात में हम इतने संजीदा है।
मेरे बचपन के खवाब वाले किरदार भी आजतक ज़िंदा है।
उम्र बढ़ गईं है उनकी किरदार निभाते निभाते ।
बचपन से आजतक वहीं लोग मेरे ख्वाबों मे आते जाते।
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कुछ वक्त बाद जब झूठ का परदा हट जायेगा।
वो शक्स लौट कर अपने घर आयेगा।
रोशनी के बाद कोहरा छट जायेगा।
उस शक्स को अपना दर साफ़ नज़र आयेगा।
चकाचौंध का शज़र जब निपट जायेगा।
वो शक्स अपनो के गले लिपटने आयेगा।
तड़प बढ़ जायेगी जब अपना कोई बट जायेगा।
आँखों की पट्टी खुल जायेगी सच नज़र जीआयेगा।
देर हो जायेगी गलतियों पे तू पछताएगा।
सर झुकाएगा या टकराएगा फ़िर भी लौट कर तेरे पास ना कोई आयेगा।
रिश्ते बिखर जाएंगे तुझे ना कोई चाहेगा।
गलत आगाज़ का अंजाम भी ग़लत ही आयेगा।-
मुस्कुराते हुए तेरे रुखसारो पे जब तिल नज़र आता है।
क्या तुम्हें मालूम है।
देखने वालो का दिल पिघल जाता है।
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तेरा यूं बार बार भूल जाना।
एक दिन मुझे भूलाने के काम आयेगा ।
तेरे ज़ेहन मे वाहिद मै रहूंगा।
पर तेरे लबों पे मेरा नाम ना आयेगा।
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