ग़ज़ल।
तेरा मिलना झुरमुटों के बीच
लब पे लब थे धड़कनों के बीच
रूह ने कल जिस्म को यूँ बोला
रह ले अपनी तू हदों के बीच
बचना इन शीरी ज़बानों से तू
ज़हर है इन शरबतों के बीच
है तज़र्बा ज़िन्दगी का उसको
वो रहा है बरगदों के बीच।
© ग़ज़लयार-
अब घरों में रहते हैं,
सोफ़ा अलमारी और परदे,
या मौला ,तू इन घरों को,
पहले जैसा ही कर दे।
सूटिड बूटिड इत्र लगा
हाथ मिलाते ठन्डे लोग,
इनके दिलों में, रिश्तों की
कुछ तो गर्माहट भर दे।
© कैप्टेन आर 'ग़ज़लयार'
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ग़ज़ल।
इक ज़ख्म जो रिसा है भीतर
वो शहर दर्द का है भीतर
छूकर मुझे तू कर दे ख़ाली
जाने क्या भरा है भीतर
बाहर धुआँ कहाँ से आया
कुछ आग में जला है भीतर।
© ग़ज़लयार-
ग़ज़ल।
इश्क़ में हूँ, मैं इबादत में हूँ
इक अलग सी ही बुनावट में हूँ
लूट ले मुझको,ज़माने जी भर
मैं फ़क़ीरी की रवायत में हूँ
दर्द गहरा बस गया है भीतर
ख़ुशनुमा तो मैं दिखावट में हूँ
आँधियों से ख़ौफ़ क्यूँ हो मुझको
मैं हवा की ही हिफ़ाज़त में हूँ।
© ग़ज़लयार-
फ़र्द
"मेरे सीने में इक आहट सी रहती है यारो,
कोई हर लम्हा चलता है गहरा मेरे भीतर।"
© ग़ज़लयार-
ग़ज़ल।
आगोश में भर लेती हैं तन्हाइयाँ
फिर याद आती हैं तिरी बदमाशियाँ
पहलूनशीं होकर लबों पे लब तू रख
बैठेंगी तब ही चैन से चिंगारियाँ।
© ग़ज़लयार-
दरमियाँ क्यूँ, फ़ासला है,
क्या किसी की,बददुआ है।
नींद तेरे पास है क्या,
रात भर से,गुमशुदा है।
©कैप्टेन आर 'ग़ज़लयार'-
वो तो है , रहमत का , लबालब दरया यारो,
उतरेगा कैसे , उसका सब कर्ज़ा यारो।
रौशनी की इक चादर,बिछ जाती है खुद ही,
क्या सूरज ने , कभी कोई बिल भेजा यारो।
#© ग़ज़लयार-
नज़्म।
मायूस न हो
कहीं एक भी चेहरा,
परकटों के लिए भी
उड़ान रखना,
कब आ जाये
कोई भटका मुसाफ़िर,
बिन दरवाज़ों का
खुला मकान रखना।
© ग़ज़लयार-
ग़ज़ल।
इस हुस्न को भीगने दे बरसात में
जुगनू चमकने दे क़ातिल महताब में
ये ख़्वाब है, हम गुज़ारे इक रात साथ
ताउम्र ये दिल रहेगा अहसान में
हैरान हूँ इस बुलन्दी पे अपनी मैं
उड़ता है ये कौन मेरी परवाज़ में।
© ग़ज़लयार-