QUOTES ON #ग़ज़ल_ए_बेज़ार

#ग़ज़ल_ए_बेज़ार quotes

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9 APR 2021 AT 17:57

हर कोई है ग़मज़दा, हर किसी को परेशानी है.
सब मर रहे हैं खुद में, ये कैसी जिंदगानी है !!

रूहानी इश्क़ की दुआ कोई करता ही नहीं
इन जिस्मानी चाहतों में अब बड़ी आसानी है !!

फुरसतों के पल भी अब हासिल नहीं होते
दोस्तों की शक़्ल भी, आवाज से पहचानी है !!

दो दिन की बेवफ़ाई में मरने चले हैं लोग
ऐ इश्क़ तेरे कायदों पे होती अब हैरानी है !!

बूढ़े शज़र पर लिखते है, हाल-ए-दिल अपना
इक़रार की जुर्रत नहीं, ये कैसी जवानी है !!

कि जिंदा है जब तक, जी हर लम्हें को 'बेज़ार'
मौत का क्या है, ये तो कभी भी आ जानी है !!

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23 NOV 2021 AT 18:50

अक्स तुम्हारा इस जेहन में उतर जाने दो
इक एहसास नया मुझमें गुजर जाने दो..

गर्दिश-ए-वक़्त की कैद में है जिंदगी मग़र
तुम्हारी बाहों में रूह मेरी अब बिखर जाने दो..

अरसा हुआ, ना देखा आईना कभी हमने
तुम्हारी मोहब्बत की इश्तिहा में निखर जाने दो..

ख़्वाबों ख़यालों की दुनिया उलझाती है बहोत
आतिश-ए-गम को जरा तबीयत से सँवर जाने दो..

हां मुद्दत हुई, ना हुई तुमसे बातें बेहिसाब
फिर कभी 'बेज़ार', आज की रात मग़र जाने दो..

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22 JUL 2020 AT 10:17

शेर-ओ-शायरी में यक़ीनन क़माल हो तुम !
तारीफ़ नहीं मुमकिन, बस बेमिसाल हो तुम !!

'जौन' सा दर्द उभर आता है तुम्हारी ग़ज़लों में,
तो क़भी 'ग़ालिब' का इश्क़िया ख़्याल हो तुम !

घायल है कई यहाँ, तुम्हारी क़लम की धार से
इक अनकहा सा मानो पेचीदा सवाल हो तुम !

हर मुश्किल को अपने अंदाज़ से मात दी है तुमने,
मानो इन अंधेरों को चीरती एक मशाल हो तुम !

जिंदगी का अक्स बतलाते हैं ये गीत तुम्हारे,
'बेज़ार' के दिल मे जिंदादिली की मिसाल हो तुम !

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28 JAN 2022 AT 17:41


आ रही है सदा, जरा देखो तुम मयख़ाने से..
छलक रहा है दर्द, आज फिर किसी पैमाने से..

ख़्वाहिशें ख़्वाब इश्क़, ये अंधेरो की बातें है
जुगनू भला कहाँ ठहरे हैं जोर आजमाने से..

नफ़रतों का दौर भी अब सिमट सा गया है
नहीं रहा कोई शिकवा, गिला मुझे जमाने से..

कहीं भी हो अब सफ़र, मुझे ढूंढ ही लेते है
वाक़िफ़ है दर्द भी, मेरे हर ग़म-ए-ठिकाने से..

मुश्किलात है 'बेज़ार', मगर जीना भी जरूरी है
सुकूँ भी कहाँ मयस्सर है, सिर्फ यहाँ मर जाने से..— % &

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18 NOV 2021 AT 17:22

अरमान इस दिल के अब मचलते नहीं है..
बिना इजाज़त ये अश्क़ भी निकलते नहीं है..

बड़े ग़ुरूर से चलते है वो, थामे हाथ रक़ीब का
अरे जानां ! तुम महफ़ूज रहो हम जलते नहीं है..

हर्फ़-ए-दम से है जिंदगी मुक़म्मल आज भी
बड़े बुज़दिल है वो, जिनके ग़म संभलते नहीं है..

बेशक़ मुक़म्मल नहीं अब कोई अर्ज-ए-तमन्ना
क्या सितम है! फ़िर भी ख़्वाब हम बदलते नहीं है..

ख़्याल रहे, कि ख़्याल है हमें आज भी तुम्हारा
यूं हर्फ़ 'बेज़ार ' के हर किसी पे पिघलते नहीं है..

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17 JUN 2020 AT 19:56

क्या सितम है! कि यूँ ख़ुद को सताते है हम .
उन्हें भुलाकर ,अपना इश्क़ निभाते है हम..

वो सोते है गैरबिस्तर पर बेख़ौफ़ होकर
आसमां के तारों को करीने से सजाते है हम..

वो भूल गए है मुझे, तो गिला नहीं उनसे
उनकी यादों में सफर जिंदगी का बिताते है हम..

मोहब्बत उनकी, बदलती है लिबासों की तरह
यहां सुरमा आज भी उनकी पसंद का लगाते है हम..

वो करते रहे हैं गुलज़ार महफ़िलों को अपनी ,
अपनी ग़ज़लों में आज भी खुद को 'बेज़ार' बताते है हम...

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24 FEB 2022 AT 10:37

तेरे इश्क में इस कदर जीना मुहाल हो गया
बिन पिए ही झूमते हैं, ऐसा हाल हो गया..

हर दफा तेरे कदमों में होती रही शिकस्त
हर दफा ही मेरा दिल पाएमाल हो गया..

तुम करते रहे रोशन महफ़िलों को अपनी
यहाँ वज़ीफ़ा-ए-दिल मेरा बहाल हो गया..

तमाम दौलत-ए-जां, हार दी मोहब्बत में
तूने आह तक ना की, उफ़्फ़ कमाल हो गया..

तेरे लबों से ना हुआ, ज़िक्र भी 'बेज़ार' का
कहाँ तेरे शहर में तख़ल्लुस मेरा मिसाल हो गया..

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7 DEC 2021 AT 21:12

ना पाने की जुस्तुजू है ,ना खोने की बेक़रारी है
मरने तक का ख़ौफ़ नहीं, कैसी ये इश्क़ ख़ुमारी है..

ख़्वाबों ख़यालों में मचल ही जाएंगी हसरतें
क्या हुआ गर शब-ए-वस्ल पे हिज्र की रात भारी है..

गुज़ारिश है ! ना पढ़े मौत के फ़ातिहे अब कोई
लाज़िम है यहाँ जीना, सो हमने जिंदगी गुजारी है..

ना सुरमा, ना शोख़ी, ना सुर्ख रुख़सार है मेरी हस्ती
तुम्हें पसंद है, कि हर अदा हमने निगाह में उतारी है..

हर ज़ुल्मो सितम जमाने के समेटे है हम खुद में
तुम महफ़ूज रहो जानां, कि जां तुम्हारी हमें प्यारी है..

और ये जो बैठे है तैयार, मेरे इश्क़ का तमाशा देखने
कोई बतलाए इन्हें कि 'बेज़ार ' में जिंदा अभी बेजारी है..

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15 OCT 2020 AT 19:30

मामूली मोह्हबत मर गई, तलबगारों के बीच
मरता है ज़िस्म मेरा, रोज़ बीमारों के बीच..

ख़्वाहिश थी जीने की कभी आसमां में
अब जिंदगी कट रही है दीवारों के बीच..

जिन महफ़िलों में सीखे थे, तरीक़े जीने के
अब छलकते हैं अश्क़, उन्हीं यारों के बीच..

जमीं-ओ-जागीरी का शौक़ अब क्या रखें
जब दिल ही बंट गया, फ़क़त दरारों के बीच..

किस सादगी को संभाले ऱखा हैं यूँ 'बेज़ार'
यहाँ तो शराफ़त रोज लुटती हैं बाजारों के बीच..

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19 JUN 2020 AT 16:28

इन पजमुर्दा किरदारों को, बनाता कौन है?
इस फरेबी दुनिया को, आखिर चलाता कौन है ?

तस्वीरें भी खींच ली जाती है ग़रीबों की यहाँ,
अरे अमीरों के ख़ज़ानों को यहाँ दिखाता कौन है ?

चल पड़ते है मजदूर अपनी जिंदगी का बोझ लेकर,
बड़ी गाड़ियों के सुकून में उन्हें बैठाता कौन है ?

नोंचे जाते है जिस्म यहाँ, जब भी दरिंदो के हाथों
उन मासूम बच्चियों को इंसाफ, दिलाता कौन है ?

मरने के बाद कंधा देने को है तैयार कई,
जीते जी किसी का हाथ यहाँ सहलाता कौन है ?

सब क़ातिल है यहाँ, आँखों पे पट्टी बाँधे है..
सच मालूम है सबको, मगर बोल पाता कौन है?

कि क्या दौर है , हर तरफ है बेबसी छाई..
सब लाशें है 'बेज़ार' ! जिंदा नजर आता कौन है ?

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