#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
मदद मज़लूम की करना ख़ुदा का काम है यारो ।
ख़ुशी बाँटो जहाँ में तुम यही पैग़ाम है यारो ।
मुहब्बत के लिये जीना मुहब्बत के लिये मरना,
ख़ुदा से हो मुहब्बत तो, तुम्हारा नाम है यारो ।
बिना उम्मीद के मिलती, जहां हर चीज है हमको,
उसी के दर पे अब होती, सुबह से शाम है यारो ।
लगाकर अक्ल करने से, सफल सब काम होते हैं,
बिना सोचे करे जो शख़्स, वही नाकाम है यारो ।
उसे मानो उसे पूजो जहां में एक बस वो है,
मिले उससे यहां सबको, खुशी बेदाम है यारो ।
करो खिदमत अगर तुम भी, किसी लाचार रोगी की,
भुला नेकी किया जो भी, यही निष्काम है यारो ।
ग़ज़ल जो लिख रहा हूं मैं, नहीं उसका कोई सानी,
फलक अवधेश का है अब, ये चर्चा आम है यारो
अवधेश सक्सेना
शिवपुरी मध्य प्रदेश-
#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल #अवधेश_की_शायरी #हिन्दुस्तानी_ग़ज़ल
#हिमालय_को_पिघलना_चाहिए_था ।
हिमालय को पिघलना चाहिए था ।
ज़रा सूरज चमकना चाहिए था ।
अटरिया पर बने इन घोंसलों में,
परिंदों को चहकना चाहिए था ।
मुहब्बत थी अगर हमसे कभी तो,
उन्हें इजहार करना चाहिए था ।
सदर पे आ गई कितनी चमक है,
शहर को भी निखरना चाहिए था ।
खिले हैं फूल गुलशन में सनम के,
उन्हें अब तो सँवरना चाहिए था ।
पतंगा जल रहा था प्यार में जब,
शमाँ का मोम बहना चाहिए था ।
उन्होंने प्यार में धोखा दिया तो,
तुम्हें उनसे झगड़ना चाहिए था ।
अगर वो पास में आ ही गए थे,
उन्हें कस के जकड़ना चाहिए था ।
खिलौना मांगने अब खेलने को,
कोई बच्चा मचलना चाहिए था ।
अवधेश कुमार सक्सेना - 02092020
शिवपुरी मध्य प्रदेश-
#ग़ज़ल
#अवधेश_की_ग़ज़ल
#हिन्दुस्तानी_ग़ज़ल
#अवधेश_की_शायरी
#कली_खिली_जो_जरा_चमन_में ।
कली खिली जो जरा चमन में ।
भ्रमर खुशी से उड़े गगन में ।
महक बहेगी कहाँ कहाँ अब,
गली गली में घुली पवन में ।
यहाँ अभी जो बहार आई,
हसीन दिखते सभी सपन में ।
झलक जरा सी हमें दिखा दो,
बसा रखेंगे तुम्हें नयन में ।
असर हमेशा बना रहेगा,
अगर कहो सच मिला बचन में ।
सजन सलौना चला गया तो,
बदन जलेगा विरह अगन में ।
किलो पढ़ो तब लिखो मिली तुम,
वजन बढ़ेगा ग़ज़ल कहन में ।
(*किलो और मिली इकाई मात्रा वाले शब्द हैं ।)
अवधेश कुमार सक्सेना-06092020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
Awadhesh Kumar Saxena-
#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
#प्रेम_रस_का_गीत_फिर_गाना_हमें ।
प्रेम रस का गीत फिर गाना हमें ।
अब उसे हर हाल में पाना हमें ।
हम हमेशा आपके ही साथ थे,
आपने कुछ देर से जाना हमें ।
आप जो भी काम बोलो वो करें,
पेट भरने चाहिए दाना हमें ।
आज भागीरथ हिमालय से कहे,
अब नई गंगा बहा लाना हमें ।
भूख खुशियों की लगी थी जोर की,
ज़िन्दगी के गम पड़े खाना हमें ।
ठोकरें खाते रहे थे राह में,
अब जहां भर ने खुदा माना हमें ।
आपकी खातिर जमाने से लड़े,
मारते हो आप ही ताना हमें ।
खूब अपनापन दिखाकर आपने,
कर दिया फिर आज बेगाना हमें ।
अवधेश कुमार सक्सेना -01092020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
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#ग़ज़ल
#तीरगी_जब_इधर_हो_गई ।
तीरगी जब इधर हो गई ।
रोशनी तब उधर हो गई ।
तंगहाली हुई क्या ज़रा,
अजनबी हर नज़र हो गई ।
आशना तो मिला ही नहीं,
पर कहानी अमर हो गई ।
काम थोड़ा हमें जो मिला,
बस हमारी गुजर हो गई ।
हम भटकते यहां आ गए,
अब यहीं पे बसर हो गई ।
बोझ ढोते रहें ता उमर,
आज टेड़ी कमर हो गई ।
जो कभी था सुहाना सफ़र,
आज मुश्किल डगर हो गई ।
अवधेश कुमार सक्सेना -31082020
शिवपुरी मध्य प्रदेश
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