वेलेंटाइन_डे स्पेशल #कविता
#आशिक #भँवरों के लिए
#अवधेश_की_कविता
भाग्य अच्छा है तुम्हारा, वो दुआ देता तुम्हें ।
कर दिया बर्बाद जिसको, वो बचा लेता तुम्हें ।
काठ की हांडी दुबारा, आग पर चढ़ती नहीं ।
झूठ की बारात फिर से, हर कहीं सजती नहीं ।
छोड़ दो ये हरकतें तुम, अब बहुत भारी पड़ेंगी ।
जो सहन कर लें तुम्हें वो, अब नहीं देवी मिलेंगी ।
भूत गर उतरा नहीं ये, कुछ नहीं फिर कर सकोगे ।
जिंदगी बर्बाद होगी, दर्द में आहें भरोगे ।
एक से हो इश्क़ सच्चा, तो ख़ुदा भी साथ है ।
दूसरे की चाह की तो, नाश ख़ुद के हाथ है ।
©इंजी.अवधेश कुमार सक्सेना -12022022— % &-
कर लिया बर्वाद खुद को, जिसने तेरे नाम पर ।
पर बहुत खुश है मगर तू, उसके इस अंजाम पर ।
सोचना फ़ुरसत मिले तो, तुझको अपने काम से,
दंड इसका पायेगा तू, है भरोसा राम पर ।-
#प्रियामृतावधेश
तज
चिंता
भविष्य की
डर अतीत के
रख विश्वास सदा
ईश्वर करेंगे कृपा
वर्तमान में जीना है
तुझे आनंद रस पीना है
मन विचार चलते सही दिशा में ।
कष्ट नहीं आते दिवस निशा में ।
पर नही स्व स्थिति को सुधार ले
जीवन अपना सँवार ले
क्रोध नहीं आने दे
मद को जाने दे
अहम छोड़ दे
आगे बढ़
प्रभु को
भज
©अवधेश कुमार सक्सेना 'अवधेश'- 22012022
शिवपुरी, मध्य प्रदेश-
#हरिगीतिका_छंद #नवरात्रि #स्तुति
#माँ #कालरात्रि #अवधेश_की_कविता
नवरात्रि के सप्तम दिवस माँ, काल रात्रि पुकारतीं ।
भय भूत प्रेतों शत्रुओं को, माँ पलों में मारतीं ।
गर्दभ सवारी माँ तुम्हारी, नेत्र तीनों लाल हैं ।
माला चमकती बिजलियों सी, लम्ब बिखरे बाल हैं ।
अँधकार जैसा रंग काला, अग्नि छोड़े नासिका ।
चारों भुजाएँ शक्ति शाली, धारतीं माँ कालिका ।
माँ वर अभय कंटक खड्ग ले, हाथ में विचरण करें ।
माँ हैं शुभंकारी सदा ही, लाभ शुभ से घर भरें ।
है चक्र सहस्त्रार जागृत, आज माँ का ध्यान है ।
माँ सिद्धियाँ निधियाँ मिलें जो,शक्ति बल धन ज्ञान है ।
माँ यम नियम संयम तुम्हारे, हम करें पालन सदा ।
करना कृपा माँ भक्त जन पर, दूर करना आपदा ।
माँ हम उपासक हैं तुम्हारे, विघ्न कष्टों को हरो ।
स्वीकार करके प्रार्थना माँ, कामना पूरी करो।
इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना- 19042021
शिवपुरी, मध्य प्रदेश-
#दोहे #अवधेश_के_दोहे
साँप शेर हाथी कभी, ले भी सकते जान ।
फिर भी इनको पूजते, धर्म सनातन मान ।
प्रेम दया करुणा क्षमा, मानव गुण अनमोल ।
इनको धारण हम करें, जैसे कच्छप खोल ।
धर्म सनातन का नहीं, करता कोई भेद ।
मानव मानव मध्य में, प्रेम कराते वेद।
सहिष्णुता छूटे नहीं, वाणी में रस घोल ।
वेदों का ये ज्ञान है, दुनिया में अनमोल ।
शिव शक्ति से सृष्टि चले, एक यही ॐकार।
ध्यान इसी पर जब लगे, मिथ्या है संसार ।
©इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना 'अवधेश'
13012022-
#स्वामीविवेकानंद #दोहे #अवधेश_के_दोहे
योगाग्नि ही दग्ध करे, मनुष्य के सब पाप ।
सत्वशुद्धि निर्वाण भी, पा सकते हो आप ।
स्वयं में ही भगवान हैं, ब्रह्मयोग का सार ।
योगी जन के कर्म का, ये ही है आधार ।
राजयोग पर दे गए, ज्ञान विवेकानंद ।
पढ़कर इसको प्राप्त हो, जीवन का आनंद ।
उठो, जगो, आगे बढ़ो, लक्ष्य करो संधान ।
पूजा मानो कर्म को, गीता का भी ज्ञान ।
बन जाते बैसे सभी, जैसा करें विचार ।
बलशाली मानो सदा, जीतोगे हर बार ।
जिस दिन कठिनाई नहीं, मिलें तुम्हे दो चार ।
समझो रस्ता नहीं सही, चलना है बेकार ।
धन की तो रक्षा सभी, करते जैसे जान ।
ज्ञान करे रक्षा सदा, धन से बढ़कर ज्ञान ।
जीवों की सेवा करो, स्वामी का संदेश ।
जीवन परहित में लगा, सफल हुए 'अवधेश' ।
©इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना 'अवधेश'
12012022-
#हिंदी #हिंदी_दिवस
बारह खड़ी बच्चे पढ़ें, हिंदी लिखें बोलें सभी ।
हिंदी प्रचारित हम करें, बन्धन अभी खोलें सभी ।
इसको प्रसारित भी करें, इस देश के हर गाँव में,
हम शब्द जो बोलें सभी, शीतल करें वो छाँव में ।
हो यांत्रिकी विज्ञान या, शिक्षा चिकित्सा ज्ञान की ।
हिंदी बने माध्यम यहां, है बात ये सम्मान की ।
परिपत्र या आदेश हो, संगीत या फिर गीत हो ।
जब मातृ भाषा में बने, उनसे सभी को प्रीत हो ।
है राजभाषा देश की, हिंदी हमारी जान है ।
माँ संस्कृत से अवतरित, समृद्ध इसकी शान है ।
कब राष्ट्र भाषा ये बने, हम देखते सपना यही।
अब विश्व भाषा ये बने, हो प्रयत्न बस अपना यही ।
©इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना 'अवधेश'
10012022-
#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
मिले चैन तुमको हमें गर भुला के।
चले याद की हम, शमाँ को बुझा के ।
रखो मत गमों को, दबा कर कभी यूँ,
कहो आँख की इस नमी को सुखा के ।
वफ़ा ही दिखेगी अगर देख लो तुम,
ख़याली बहम की दिवारें गिरा के ।
सही ख़ुद को साबित उन्होंने किया है,
सभी गलतियाँ फिर हमारी गिना के ।
रहे नाम उसका हमेशा जहाँ में,
बने जब ख़ुदा वो ख़ुदी को मिटा के ।
लकीरें बना कर, हमारे दिलों में,
मिले तख़्त उनको हमें यूँ लड़ा के ।
ये 'अवधेश' सबको बनाते मुक़म्मल,
हुनरबाज़ क़ाबिल सिखा के पढ़ा के ।
©इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना -10012022
शिवपुरी, मध्य प्रदेश-
ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
दिल में शोले कहीं सुलगते हैं ।
मोम के दिल कहीं पिघलते हैं ।
लूटते झूठ के सहारे जो,
दिल के अरमान वो कुचलते हैं ।
चार लोगों की जो करें परवाह,
मिल के भी वो यहाँ बिछड़ते हैं ।
ख़ूबसूरत दिखें लगें ताज़ा,
फूल नकली कहाँ महकते हैं ।
हमकदम साथ जो नहीं चलते,
मेंढकों की तरह उछलते हैं ।
बेवफ़ा हो गए सनम वो अब,
सामने से नहीं गुजरते हैं ।
है इबादत नशा तभी इसको,
पी के "अवधेश' भी बहकते हैं ।
© इंजी. अवधेश कुमार सक्सेना 'अवधेश'
शिवपुरी, मध्य प्रदेश-