सुनो ,
जो तुमसे कहा था ना
कि खुश हूं तुम्हारे बिना
हाँ वो झूठ था
कहता तो ये भी था ना
कि बहुत प्यार करता हूँ
वो तो ना मानी ,ये कैसे?
दिन भर लेटा ही तो रहता हूँ
खुद से रूठा सा
कोई नही है बताने वाला
कि अब जा रही , अब आ गयी
कोई नही पूछता है कि
कुछ खाया क्यो नही
और नहा बाद मे लिया करो
पहले कुछ खा लिया करो
कमजोर हो गये हो
अब दिन भर बस एक बात
का ही तो इन्तजार रहता है
कि काश! कोई आवाज दे
दोपहर हो गयी है कुछ खा लो
बाद मे नहाना..तब तक मै भी आई
सुनो तो....-
सुनो ,
वो लोग जिन्होने हमें देखकर
इश्क पर भरोसा किया था,
बाते करते थे जो हमारी
हमारे क्लास से जाने के बाद,
वो चाय वाला जहां हम लोग
रोज शाम चाय मे मलाई पडने तक
गरम होने का नाटक करते रहते थे,
वो गेटमैन जिसे तुम्हारी स्कूटी का
नम्बर याद हो गया था ,
वो प्रेस वाला जो तेरे कपडो के पैसे
हमेशा मुझ से मांगा करता था,
वो लाइब्रेरी वाले भैया जो
तेरे किताब खोने की डाट मुझे लगाते थे,
सब अब अकेला देखकर मुझे
मुह फेर लेते है...!
सुनो तो !!-
सुनो,
जब सब भूल जाना तुम
मतलब सब कुछ ...मुझे भी
और खुद को भी..
तब बस इतना सा याद रखना
कि तुम आज ,कल और हमेशा
जिन्दा रहोगे मेरे दिल ओ दिमाग मे
और तेरी कहानी सातो जन्म...!
रखोगे ना याद?-
सुनो, इतवार के दिन ,
सुबह देर तक सोने के बाद
फोन मे पडे तेरे ढेरो मैसेज,
फिर मनाने के लिये किये गये
मेरे ढेरो मैसेज और कॉल,
फिर पहली बार मे ही मान जाने के बाद
देर तक रूठे रहने की तेरी वो नादानी,
फिर सबसे छुपकर बात करने की
तेरी वो अनकही अनसुनी सी अदा,
आज भी याद है!
अच्छा इतवार से एक रात पहले
पूरे इतवार करने वाले सारे कामो
की वो क्यूट सी प्लानिंग याद है तुझे ?
पर सच बताऊ
वो सब हकीकत से ज्यादा
अब मुझे ख्बावो मे अच्छे लगते है
सुनो तो ...!-
सुनो , अबकी बार
जब भी,जहां भी ,जैसे भी मिलना
बस मिलना बिना किसी तारीख ,
बिना किसी समय और बिना किसी
खास जगह के निश्चित किये हुये ।
ऐसे ही इसके उलट
जब दूर जाना या ऊभ जाना मुझसे
तब भी अचानक , यकायक ओ एकदम से
चले जाना ,बिना तारीख, दिन ओ समय बताये
और कुछ हफ्तो ,महीनो या सालो
पहले से ही हटा देना सब अखबार
कलैन्डर और घड़िया मेरे पास से ।
क्यो कि तारीख , दिन ओ जगह
ही है जो तुम्हे भूलने के बाद भी
तुमसे ज्यादा याद रहती है ओ दर्द देती है।
तो तुम करोगे ना ऐसा ?
सुनो तो !-
सुनो,
जो तुमने पर्स दिया था मुझे
अपने एक साल पूरे होने पर,
उसकी एक बटन टूट गयी है
बिल्कुल मेरी तरह..अन्दर से
और वो जो तूने घडी दी थी ना
मेरे जन्मदिन पर ..वो अब चमक में
फीकी पड गयी है .. बिल्कुल अपनी तरह,
पर तब से कई घडिया हो गयी है
पर हाथो पर अच्छी कोई नही लगती
मै आज भी वही ओ सिर्फ वही पहनता हूं
और वो जो पहली चोकलेट दी थी
उसकी पन्नी आज भी सभाल के रखी है
बस उसमे ही एकदम नयी जैसी चमक है
बिल्कुल पहले दिन जैसी
शायद वही रहेगी हमेशा नयी ओ सलामत
बिल्कुल अपने रिश्ते की तरह.. सुनो तो..-
सुनो ,
सर्दिया आने को है
ओ बाबा उस पुरानी अलमारी को इस सर्दी,
अलाव मे जलाने को कह रहे थे ।
उसमे दीमक जो लग गयी है ना
तो मैने भी बस सिर झुका के हां कर दिया ।
वो जो खत थे तुम्हारे , जिनमे
तुमने मुझे प्यार से शब्दो में उकेरा था ,
सारे रख दिये है उसी अलमारी में
दीमक के सिरहाने सम्भांल के ;
ओ वो जिनमे मुझे भला-बुरा
ओ वेबफा कहा था , रख लिये है सारे
सिरहाने अपने तकिये के नीचे सम्भाल के !
सुन रही हो न .. सुनो तो !-