नसीबों के खेल में उलझा हूं, जाने किस डगर किस गली से निकल रहा हूं.
अधजले चिराग़ सी हो गई है फितरत अपनी ना बुझ रहा हूं ना जल रहा हूं.
✍🏼 साहिल विकास-
याद आती नहीं चैन से गुजरी मेरी कोई रात हो,
एक दुआ मेरी मरने की कर दो तो कोई बात हो.
उतर रहा हूं मैं अब अपनो कि निगाह से ऐ ख़ुदा,
चुभता हूं आंखों में जैसे दुख की कोई बारात हो.-
अश्कों से डर के हर मोड़ पे, मुहब्बत से दूरी हम बढ़ाते चले गए,
ना बन जाए कहीं दास्ताँ - ए - इश्क, हर हर्फ हम मिटाते चले गए.
पाया तो सब कुछ मगर,कश्ती - ए - ज़िन्दगी को नसीब किनारा ना हुआ,
यूं समझ लीजे कि ख़ुदा की बनाई इक नेमत से राब्ता हमारा ना हुआ.
- साहिल विकास-
कैसा है ये जीवन, जहां मिले कोई छोर ना,
केवट भी नदिया में ले जाए किसी ओर ना.
हर दिन एक आश जले, रोज बुझ जाये है,
हे राम क्यूं करता मेरी खुशियों का भोर ना.
- साहिल विकास-
कुछ ने अपना कहा मुझे तो कुछ लोगों ने बहाना ढूंढ लिया,
जिसने नफरत की ऐब ढूंढा, जिसने चाहा ख़ज़ाना ढूंढ़ लिया.
✍🏼 साहिल विकास
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नींद, सुकुं, उम्मीद, खुशी और बेहतरी कल की.
कुछ बेकार से लफ्ज़ और तसल्ली एक पल की.
- साहिल विकास
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ज़िन्दगी हर मोड़ पे कुछ सीखा जाती है हमें
तजुर्बा हर वक़्त अच्छा हो ये जरूरी तो नहीं
- साहिल विकास-
शोख़ हंसी मस्तानी अदा तेरा नज़रे झुकाना क्या कहिए.
चेहरे पे लटें उलझी हुई आंखों में नशा फिर क्या कहिए.
तू दूर हुई एहसास हुआ ये सारे भरम मोहब्बत के रहे,
इश्क़-ए-चश्मा टूट गया #वहम-ए-मोहब्बत क्या कहिए.
- साहिल विकास-
हृदय नगर में कौतुहल कैसा, पिया मिलन का पल अभी शेष है।
निखारूँ स्वयं को सज-सँवार, आने वाला वो पल बड़ा विशेष है॥
मन चंचल और #हिया अधीर, श्वांसो में बेचैनी है बढ़ रही।
है समय का रथ अवरुद्ध, घड़ियाल बजाने वाले तेरा मुझसे कैसा द्वेष है॥
- साहिल विकास-
शाम यारों संग बिताने की बात जरा पुरानी है.
बढ़ रहा हूं अकेला ज़िन्दगी फिर भी सुहानी है.
सब होते मेरे पास जो होती फिज़ा रंगीन मगर,
सपने महंगे खरीदे हैं और किस्तों में चुकानी है.
✍🏼 साहिल विकास-