Sahil Vikas   (@sahilvikas33)
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Electronics Engineer, part time poet.
Joined 18 March 2018


Electronics Engineer, part time poet.
Joined 18 March 2018
22 OCT 2024 AT 23:36

तुम्हारी शख्सियत का आईना हूं, यक़ीनन बेकार मैं भी नहीं हूं.
तुम संवर के सामने आओ तो सही बदसूरत मैं भी नहीं हूं.
तुमने तो दुआ में ही मांग लिया कि फिर से हमारा कभी साथ न हो.
फिर सब कुछ टूट जाने का अकेला कसूरवार मैं भी नहीं हूं.

✍️ साहिल विकास

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20 JAN 2022 AT 12:17

किसी और का तुझे देखना बुरा लगता है.
कोई नाम जो तेरा ले तो बुरा लगता है.
दिल का छोटा नहीं ऐसा प्यार था मेरा ,
जो और कोई चाहे तो बुरा लगता है.

तू मेरी नहीं कोई बात नहीं है,
किसी और कि हो तो बुरा लगता है.
तू रातों को जाग तो कोई बात नहीं है,
वजह मैं नहीं तो बुरा लगता है.

#साहिल_विकास

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29 JUN 2020 AT 20:10

खिले गुल मुरझा गये मौसम ए गुलजार में.
दर्द कोई समझा नहीं दिखावे के बाज़ार में.
कोई ऐसा मिला नहीं जिससे कहते दास्तां,
ज़ख्म हमारा बढ़ गया मरहम के इंतजार में.

✍🏼 साहिल विकास

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2 APR 2021 AT 8:53

कोशिशें बेशुमार रहीं जाने कैसे अधूरा काम रह गया,
पैमाना भी छलका जब दो हांथ लब-ए-जाम रह गया.

✍️ साहिल विकास

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20 MAR 2021 AT 8:59

चार दिन की जिन्दगी और खुशियों के भी दिन चार हों,
जो दरमियाँ ख़्वाब और नसीब के, सुलह के आसार हों.

✍️ साहिल विकास

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14 FEB 2021 AT 11:33

आगे बढ़ रहा है सूर्य, ढल रही धूप संग,
मिलों दौड़ते दौड़ते आराम की तलाश में।
सकुचाई खड़ी निशि अंबर की ड्योढ़ी पे,
लाल हुये गाल लिए मिलने की आश मे॥

पंछियों की मधुर शोर, गुंज रही चहुं ओर,
बज रही शहनाई जैसे प्रकृति आकाश में।
मंद मंद मुस्कुराती, सुरमई पेड़ों की डाली,
आ रही शीतलता भी प्रभाकर प्रकाश में।

खून खून हुआ लाल विरह के वियोग में,
दिवा का दिल रासि ज़ख्म के ख़राश से।
और क्यूँ रंगीन हुई जा रही सिंदूरी शामें,
क्या चुरा लिया है रंग इसने ‘पलाश’ से॥

✍️ राजीव श्रीवास्तव

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22 OCT 2020 AT 21:34

तुम गैर भी थे पर लगे भी नहीं.
तुम मेरे ही थे पर मिले भी नहीं.
अजीब हो गये तेरे हिज़्र में हम,
जिए भी नहीं और मरे भी नहीं.

✍🏼 साहिल विकास

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18 OCT 2020 AT 22:39

खड़े हो थामें पत्थर तुम भी गैरों की भीड़ में,
करें अपनेपन की शिकायत ही क्या.
तड़पाओ तुम भी मुझे सुकून आने तक, अब
दर्द की अदायगी में रियायत ही क्या.

✍🏼 साहिल विकास

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28 JUN 2020 AT 8:38

बहती नदी, वो झरने, गुलदार का पेड़ और हंसी नजारें हैं.
मुझको सुकून तभी तक है जब तुम मेरे और हम तुम्हारे हैं.

✍🏼 साहिल विकास

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18 JUN 2020 AT 21:23

तेरी महफ़िल से अलग पंखों को परवाज़ दी.
ना हमने पलट के देखा ना तुमने आवाज़ दी.

✍🏼 साहिल विकास

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