भूल जा...
यह प्रेम सबकुछ तहस-नहस करता है
दिल... तू क्यूँ.. बेफजूल बहस करता है,
कम से कम इतना तो कुछ रिश्ता है
बो.. मुझसे नफ़रत ही तो महज़ करता है!-
जो तूने दिया उससे ख़ुश हूँ मैं ज़िन्दगी
अब तेरे हर फैसले से रिश्ता जोड़ लेते हैं,
पुराने जख्मों पे नये दर्द आये हैं
चलो.., आंसुओं पे मुस्कुराहट ओढ़ लेते हैं,
इससे पहले के ख़ुश्बू आये तेरे ख़्वाबों से
ख़िलने से पहले ही वो फ़ूल तोड़ लेते हैं,
एहसान किसी का ए ज़िन्दगी रखते नहीं हम,
इक साँस लेते हैं तो इक छोड़ देते हैं..!-
एक दिन पिता अपने नन्हें बच्चे को लेकर बग़ीचे में गया
औऱ एक छोटा सा.. पेड़ लगाया,
बच्चे ने उत्सुकता बश कहा के पापा "यह मेरा है ना, मेरे लिये है ना..
पऱ इसे रोज़ कौन पानी देगा"
पापा ने अपने बच्चे के सिर पऱ हाथ फैरते हुए कहा...,
"बेटा तुम चिंता ना करो.. इसे बड़े करने की ज़िम्मेदारी मेरी,
बस शर्त यह है के जब यह बड़ा होगा ना तो
इसके...सारे फल तुम्हारे.. बस इसकी छाया मुझे दे देना"
आज वोही पिता असमंजस में है..
"बोया तो पीपल था पऱ
पता नहीं कैसे यह खजूर का पेड़ बन गया"-
छूना है अग़र आसमाँ तो.. पंख लगाने ही होंगे
आंखों में चाँद-सितारों के.. ख़्वाब सजाने ही होंगे,
गुज़रना तो होगा ही.. इन काटों की राहों से
मुकुराहटों की ओट में.. अश्क छुपाने ही होंगे
माना भूलना मुश्किल है.. तेरे लिबास की ख़ुश्बू को
फिऱ भी दिल में यादों के.. यह घर जलाने ही होंगे,
तुम्हें जो मैं भूलता नहीं.. यह बेबसी है मेरी
शाम ढले तन्हाई में.. अश्क बहाने ही होंगे,
यह गम तो अपना हमराही है.. इससे जुदा हम कैसे हों
कुछ तो ए-हसरते-ज़िन्दगी.. तेरे निशान बचाने ही होंगे..!-
लपेट कर दिन को शाम जाती रही
मद्धम-मद्धम सी रोशनी आती रही,
मुझे आसमां पे उड़ते पंछी अच्छे लगे
उन्हें ठिकानों की ज़ुस्तज़ु सताती रही,
कल्पनाओं से परे है कुछ भी नहीं
रात बेवज़ह ही जुगनू उड़ाती रही,
चाँद को छू कर अभी-अभी लौटा हूँ
नींद भी ना..झूठे ही सपनें दिखाती रही!-
नां समझो तो "मौसम" से सीख लिया करो
वक़्त के हिसाब से.. बस.. बीत लिया करो,
यादों के बादल जो छायें.. साँझ ढले क़भी
तो आंसुओं में चुपचाप.. भीग लिया करो,
क्या पता कब क़यामत का आना हो
जिंदा हो तो.. ख़ुद को जिंदादिली के क़रीब किया करो,
सब ठीक हो जाएगा.. बस थोड़ा सा सब्र करो
सूखे में बारिश की.. उम्मीद किया करो!!-
दिल में.. मंज़िल में.. है सर-ए-राह
वो कहाँ- कहाँ नहीं है..,
उससे ही तो है हर शय में सुकूँ-बख़्श
यूँ तो इतना ख़ूबसूरत यह जहाँ भी नहीं है,
अब भी उड़ते हैं ख़यालों के पंछी
मैं कैसे कह दूँ के मेरा.. आसमाँ नहीं है,
है तो है वो.. ख्वाबो-ख़्वाइशों में अब भी
भले ही मेरे पास.. वो यहाँ, नहीं है,
पऱ थोड़ी सी हवा मुझे भी मिलती है
साँस मैं भी लेता हूँ...
मन से तो वो सवा.. ,चलती वहाँ भी नहीं है,
मुहब्बत दरिया.. औऱ मैं डूब गया हूँ
बचने का.. अब कोई अरमाँ भी नहीं है,
वैसे भी.. ना कोई थाह है ना राह
औऱ किनारों का भी.. कोई निशाँ नहीं है,
दिल में.. मंज़िल में.. है सर-ए-राह
वो.. कहाँ- कहाँ नहीं है.!!-
"ज़िन्दगी से उम्मीदें कम ही रखना...
जो चाहो वो सबकुछ कहाँ हासिल होता है,
पासे पलटने में ही ना खो देना इसे
दिमाग़ से भी ख़ूबसूरत....
.....मुहब्बत भरा दिल होता है,
ऊंचा उड़ना आसमाँ छूना कोई जुर्म नहीं
पऱ याद रखना...
ज़्यादा हवा में साँस लेना मुश्किल होता है"-
मैंने पक्के मकानों में इक़ कच्ची सी बस्ती रखी है
सुख में हंसना तो दुःख में मुस्कुराने की भी हस्ती रखी है,
अगर आजमाईश है उसकी तो आजमा ले हमें वो
मैंने तूफानों के आगे.. अपनी ख़ुद-परस्ती रखी है,
माना.. यह ख़ुशियों का सारा साग़र है उसका
मैंने इसमें अपनी भी इक़ छोटी सी.. कागज़ की कश्ती रखी है,
भले ले जाये कोई ख़्वाबों के खज़ाने..आँखों से
यह ज़िन्दगी मिट्टी है.. औऱ मैंने इसकी क़ीमत मिट्टी सी सस्ती रखी है!!-
दिल करता है के इन सर्दियों में तुम्हें देखूँ
फिऱ से.. वही काली ऊन की बंद गोल गले की
काली स्वेटर पहने तुम्हें,
गले में वोहि काला पोंचो
औऱ वो.. वो उसकी पीली-पीली सी झालरें,
उफ़्फ़.. सफ़ेद पलाजो से झाँकते वो गुलाबी से तुम्हारे नाज़ुक पैर..,
काश.. तुम्हारे साथ वो ख़ूबसूरत सी सर्दियाँ फिऱ से लौट आयें...!-