दिल में.. मंज़िल में.. है सर-ए-राह
वो कहाँ- कहाँ नहीं है..,
उससे ही तो है हर शय में सुकूँ-बख़्श
यूँ तो इतना ख़ूबसूरत यह जहाँ भी नहीं है,
अब भी उड़ते हैं ख़यालों के पंछी
मैं कैसे कह दूँ के मेरा.. आसमाँ नहीं है,
है तो है वो.. ख्वाबो-ख़्वाइशों में अब भी
भले ही मेरे पास.. वो यहाँ, नहीं है,
पऱ थोड़ी सी हवा मुझे भी मिलती है
साँस मैं भी लेता हूँ...
मन से तो वो सवा.. ,चलती वहाँ भी नहीं है,
मुहब्बत दरिया.. औऱ मैं डूब गया हूँ
बचने का.. अब कोई अरमाँ भी नहीं है,
वैसे भी.. ना कोई थाह है ना राह
औऱ किनारों का भी.. कोई निशाँ नहीं है,
दिल में.. मंज़िल में.. है सर-ए-राह
वो.. कहाँ- कहाँ नहीं है.!!
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