अंजुम सी तेरे आँचल में झिलमिलाती रहती थी मैं तो "माँ"
शमीम-ए-जाँ सी आज मेरे वजूद में तुम महकती हो "माँ"-
"माँ " लिख कर तेरा नाम जब भी चूम लेती हूँ
मैं,ख़ुद में ही गुम ख़ुद के वजूद को ढूँढ लेती हूँ-
दिल सदा देता है, जब जब भी तुम्हें मेरी माँ
धड़कने पुकार उठती है,नाम तेरा ओ मेरी माँ-
मरहम नही कोई तेरी दर्द-ए-जुदाई का मेरे पास माँ।
सुकून-ए-क़ल्ब देता, दुआ बनकर रहना तेरा साथ।
दौर-ए-बेबसी में भी हिम्मत बनकर रहती तुम साथ।
दौर-ए-मुश्किल में,शमीम-ए-जाँ बनकर रहती पास।-
"माँ"तेरे नाम की महक से महक जाती हूँ
शमीम-ए-जाँ सी तुझे ख़ुद में ,मैं पाती हूँ
तेरी यादों की कश्ती में जब मैं बैठ जाती हूँ
दरिया-ए-हिज्र के पार तुझसे मिल आती हूँ-
ये जो हर लम्हा तेरी ही याद है,तेरा ही तो ख़ुमार है
ये जो हवा करे सरगोशियाँ, ज़ेहन में तू ही सवार है
ये जो तेरी याद में आँखों को नींद का रहता इंतज़ार है
ये जो तेरी लगन लगी,यही तो मेरा चैन और करार है
ये हिज्र की कसक कभी ताब है,तो कभी सुकूँ ए आब है
ये जो है सिर्फ़ तेरी जुस्तजू कभी शम्स है,तो कभी महताब है
तेरी ही धुन यूँ सवार है,जैसे कोई शीरी ग़ज़ल की बहर
तेरी ख़ुशबू यूँ बह रही जैसे भीनी हवा की ये महकार है
तुझसे जुडी़ है ये कैसी कड़ी,जैसे फूलों पर शबनम की लड़ियाँ बेशुमार है
तुम जो आकर चूम लो हवा के संग,जैसे धूप में चाँदनी सा छाए निखार है
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ओ मिरी प्यारी माँ निगाहों में ठहरता नहीं अब कोई रस्ता
तन्हाई की दहलीज पे बैठी हूँ मैं थामें तिरी यादों का बस्ता
शरारते,शिकवे हर शय अब बेमानी हुई है ओ माँ बिन तिरे
तिरे हिज्र में सफ़हा-ए-ज़िंदगी के कोरे,बेरंग हुए सभी सफ़्हे
ओ माँ वस्ल-ओ-जुदाई आकर ठहर गए हैं दिल में अब मिरे
तिरी यादों से ही दिल में खिल उठते हैं नौ-बहार के रंग सुनहरे
तिरी यादे और शब-ए-तन्हाई संग लगाते कहकहे तोड़ ख़ामोशी के पहरे
तिरी प्यारी सूरत का अक्स आँखों में आज भी मिरी नूर बन आ ठहरे
ओ मिरी माँ सियाह रात की सियाही से अब ये बेकरार दिल मिरा है बहलता
शमीम-ए-रूह-परवर तिरी लोरियो की धुन सी धड़कन की धुक-धुक दिल करता-
हर लम्हा हर घड़ी,तुझसे जुड़ी है मेरी ज़िन्दगी।
हर सू तुझे महसूस करूँ,तू मेरी साँसों में बसी।
मेरा वजूद तुझसे ही तो है,तुझसे ही मेरी ख़ुशी।
तेरा नाम ही पहचान मेरी, तुझसे ज़िन्दगी हँसी।
हवा सी रहती संग मेरे,शमीम-ए-जाँ है,माँ मेरी।
हर लम्हा माँ की यादों संग मैं रहूँ,है आरज़ू मेरी।-
मौज-ए-शमीम फिर तेरी महक ले आई है
ठंडी हवाओं ने आ आकर थपकी लगाई है
फ़ज़ा में छाई ये कैसी ख़ुश-गवार रानाई है
मानों तेरे आँचल की महक हर सू बिखराई है
लिपट जाऊँ इन हवा के झोकों से मैं कसकर
माँ तेरे वजूद की इनमें हो रही मुझे शनासाई है
बा'इस-ए-सुकूँ बन तेरी यादें जब भी आई है
दिल-ए-अफ़्सुर्दा में मेरे बजने लगी शहनाई है
'अंजुम' की ये आँखें माँ तेरे दीद की तमन्नाई है
शमीम-ए-जाँ सी संग रहो अर्ज़ी रब से लगाई है-
शमीम-ए-जाँ सी मेरी माँ,मेरी हर इक साँस में बसा करती है
वो मेरी माँ शमीम-ए-दुआ सी मेरी बिगड़ी बनाया करती है-