दोस्त सुख में संघ जो खूब झूमे;
ओर दुख में दृढ़ता के साथ ,
जो संघ खड़ा रहे ।
कहाँ हर बात कोई घर कह पाये,
कैसे कोई बात जो दोस्त से छीपी रहे जाये;
दोस्त जो बिन कहे सब कुछ समझ जाये।
दोस्ती एक धर्म है, जो जातियों से बंधे न ;
दोस्त ओ जो गोरे-काले के भेद को समझे न ।
हो दोस्त एक नहीं अनेक हो ,
पर एक दोस्त कर्ण हो ;
जिसका धर्म दोस्ती ,
और जिंदगी जिसकी दोस्त हो।
#विजयपद्यसंग्रह४३
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13 AUG 2021 AT 15:17