QUOTES ON #रूहानीशायर

#रूहानीशायर quotes

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16 JAN 2021 AT 10:58

एक 'शायरा' को पढ़ने के लिए 'अभि'
एक 'शायर' का 'दिल' होना चाहिए।।
एक 'शायरा' को समझने के लिए एक
'आशिक़' का 'दिल' होना चाहिए।।

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7 MAY 2021 AT 1:14

साथ होने से ईमानदार होना
ज़्यादा जरूरी होता हैं 'अभि'।

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5 MAR 2021 AT 0:19

उनकी क्या तारीफ़ करूँ मैं 'अभि' कि
लफ्ज़ उनके 'अधूरे' होकर भी 'क़ामिल' है।
हैं कोई 'खुशनसीब' जो दूर होकर भी
उनकी हर एक 'नज़्म' में शामिल है।

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2 OCT 2024 AT 6:30

उस ज़मीन को अक्सर चूम लिया करता
हूँ मैं जिस जगह पर वो क़दम रखती है।
सोचो उस शहर से मुझको कितनी मोहब्बत
होगी "अभि" जिस में मेरी सनम रहती है।

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24 JAN 2022 AT 20:48

तुझसे जुदा होने का मतलब है सनम कि जीते जी मर जाना।
तेरे बिन जीने का मतलब है जैसे जान ख़ुद से ही जुदा हो जाना।

तुमसे सीखा है मैंने मुदत्तों बाद फिर से इश्क़ कर पाना।
तुम ही हो ज़िंदगी मेरी, छोड़कर मुझे कभी भी अब मत जाना।

तुम आओगी इसी उम्मीद में ज़िंदा हैं तेरा ये 'अभि' दीवाना।
तुम्हें छोड़कर जीना बड़ा मुश्किल है बड़ा आसान है मर जाना।

चाहें कोई भी सज़ा दे दो हमको जाना, लेकिन कभी भी मुझे छोड़कर मत जाना।
तुझसे पल भर जो बात न हुई तो पता चला क्या होता हैं साँसों का अचानक रुक जाना।

कुछ भी हो जाए ख़ता या बदरंग ज़िंदगी मिलकर उसका हल हैं निकाल पाना।
मैं जी नहीं सकता बिना आपके जान, मुश्किल है आपके बिना कभी जी पाना।

लफ़्ज़ों में बयाँ न हो पाएगा ये इश्क़, नामुमकिन है मेरे इश्क़ की हद को बताना।
जब भी कभी तुम्हें याद करूँ न जाना तब तुम अपने 'अभि' से मिलने आ आना।

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14 JUN 2023 AT 0:17

सुनो! कुछ इस तरह से सनम तेरी इश्क़ में इबादत करता हूँ मैं।
ख़ुद को तेरी 'अमानत' मानकर ख़ुद की 'हिफा़ज़त' करता हूँ मैं।

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22 JAN 2022 AT 21:20

मुझे क्या पता ओ मेरे हमनवां ओ हमसफ़र मेरे जान-ए-जाना कि वो जन्नत क्या होती हैं।
हम बस आपको देखते हैं तो लगता हैं कि सच में मुकम्मल यहाँ हर एक आरज़ू होती हैं।

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3 JUN 2024 AT 2:01

उस समय उस "प्रेमी" का दिल "अभि"
हल्का और सीना गर्व से चौड़ा हो जाता हैं।
जब उसकी प्रेयसी को उसकी अनकही बातों
का अनसुना वाक्य समझ आ जाता हैं।

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1 FEB 2024 AT 11:18

सदियों से प्यासी है रूह मेरी "अभि" आधी ख्वाहिशें, आधी हसरतें, आधा मुकद्दर, आधे मुकाम, आधे ख़्वाब, आधी ज़िंदगी और "टूटा हुआ आधा दिल" लिए फिरता हूँ मैं, आज तक मुझे मेरा मुकम्मल "रूह" नहीं मिला है।
हमनवां, हमनफ़स, हमक़दम, हमउम्र, हमख़्याल, हमनाम, हमसफ़र और हमराह तो बहुत मिले अब तलक मुझको मुर्शिद पर जो आकर मेरी रूह को चैन-ओ-सुकून दे दे आज तक मुझे वो मेरा "हमरूह" नहीं मिला है।

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5 APR 2024 AT 11:58

कि कहीं हम उनको न दिख जाए वो अक्सर अपनी
हर गलियों और हर एक चौबारों को निहारती है।
कि क्या पता किस रोज़ किस पहर आ जाए उनसे मिलने हम, वो हर रोज़ खुद को संवारती है।

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