"अमर रिश्ता"
चाहे तुम कितनी ही दूर चली जाओ,
तुम्हारे दिल की हर धड़कन से जुड़ा रहूँगा।
ये फासले महज़ आँखों का भरम हैं,
रूह की गहराइयों में, हर पल बसा रहूँगा।
तुम्हारे लबों पर जो मुस्कान खिलती है,
वो मेरे बाग़ों में फूलों की तरह महकती है।
तुम्हारे ग़मों की आहट भी सुन लेता हूँ मैं,
ख़ामोशी में भी एक कहानी बुन लेता हूँ मैं।
यही एक रिश्ता था, जो मेरे दिल ने,
इस जहान से अलग, हमेशा के लिए चुन लिया था।-
चाँदनी की नर्म किरणें,
बदन पर उतर रही थीं।
तेरी साँसों की महक,
साँसों में घुल रही थी।
ज़ुल्फ़ें तेरी बिखरी थीं,
मेरी धड़कनों पर।
हर उलझी लट में,
सुकून का पैग़ाम था।
तेरी उंगलियों की सरसराहट,
रूह में उतर रही थी।
जैसे कोई नदी,
धीरे-धीरे बह रही हो।
अधखुली पलकें,
और मदहोश नज़ारे थे।
ये रात सिर्फ़ हमारी,
और हमारे इश्क़ की दास्तान थी।-
इश्क़ के रंग
रूह से निकली एक आह है मोहब्बत,
अश्क़ों में घुला एक एहसास है मोहब्बत।
हिज्र में भी जिसकी यादों का सुकूँ है,
वो लम्हा वो पहली इब्तिदा है मोहब्बत।
फ़िराक़ की रातें भी जिसकी ख़ुशबू से महकें,
उस वस्ल का इंतिज़ार है मोहब्बत।
जुनूँ की हदें पार कर जाए जो,
वो दिल का शोर है मोहब्बत।
सुकूँ की तलाश में दर-बदर भटके जो,
वो बेताब इब्तिहा है मोहब्बत।
इंतिहा भी इसकी रूह की हक़ीक़त है,
यही तो सच्चा फ़िराक़ है मोहब्बत।-
मैं कुछ दिन से अस्वस्थ थी, और साथ सामाजिक कार्यों में अधिक व्यस्तता थी, इसलिए कुछ दिनों से मैं कुछ लिख नहीं पा रही थी। आज से अब लिखूंगी।
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कभी यह दिल हँसता है तो कभी गुमसुम हो जाता है,
ज़िंदगी की इस दौड़ में यह न जाने क्या-क्या सहता है।
हँसी के फूल खिलते हैं तो दिल में एक रौशनी सी जगमगाती है,
ग़म के बादल जब छाते हैं तो आँखें एक कहानी सुनाती हैं।
यह इश्क़ का दरिया है, कभी शांत है तो कभी तूफ़ानी,
उसकी यादों में बहकर यह दिल बनता है एक रूहानी।
जुदाई का दर्द जब उठता है, तो साँसें थम जाती हैं,
मिलन की आस में फिर भी यह ख़ामोशी गुनगुनाती है।-
"मेरे पास रहो"
मेरे पास रहो, मेरे साथ रहो तुम,
बन गुलाब की खुशबू, पास रहो तुम।
मेरे दिल की धड़कन, मेरी साँसों में हो,
मेरे हर पल की, हर बात रहो तुम।
जब भी देखूँ तुम्हें, तो दिल को सुकून मिले,
तुम ही तो मेरी, हर दुआ में रहो तुम।
यूँ ही साथ निभाना, मेरे हमसफ़र बनके,
सपनों के शहर में, मेरे ख़्वाबों में रहो तुम।
तुमसे ही तो है, मेरी दुनिया में रौशनी,
मेरे हर अँधेरे में, मेरी चाँदनी बन रहो तुम।-
"मधुमास का श्रृंगार"
मधुमास की कोमल धूप सी, ये रूप की कैसी है चमक,
तेरे अधरों का लाल रंग, जैसे कमल रहा हो दमक।
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"इश्क़ और जुस्तजू"
कभी तो रात की ख़ामोशी में, जुगनू बन के जलता है,
कभी ये दिल किसी की याद में, शम' बन के पिघलता है।
अजीब सा शोर है, इस दिल के वीराने में सुनाई देता है,
कभी तो रूह का परचम, हिजाबों में निकलता है।
ये किस का अक्स है जो मुझ में, कभी साये सा दिखता है,
ये कैसा दर्द है जो मुझ में, कभी फूलों सा खिलता है।
कभी ये आँख, किसी के लिए, समुंदर बन के बहती है,
कभी ये दिल, किसी की आस में, सहर बन के ढलता है।
कभी तो हौसला बन कर, ये तिनकों को उठाता है,
कभी बेबस सा दरिया बन कर, ये चट्टानों से मिलता है।
कभी ये ख़्वाहिशों की नाव में, दरियाओं पे चलता है,
कभी ये अश्क़ों की बारिश में, सहरा बन के फिसलता है।
कभी तो मुस्कुराहट बन कर, ये लबों पे महकता है,
कभी ये दर्द की सूरत में, निगाहों से टपकता है।
ख़ुद को पाने की जुस्तजू में, ये भटकता है,
ये इश्क़ है जो हर मोड़ पे, एक नया वक़्त लिखता है।-
यूँ तो इश्क़ में कई मक़ाम आते हैं,
कभी अश्क़, कभी मुस्कान, कभी जाम आते हैं।-
रूह की प्यास, जिस्म की आरज़ू,
रेशमी लम्हों की ख़ुशबू,
अधरों की ख़ामोश गुफ़्तगू,
साँसों में घुलती तुम्हारी हू-ब-हू।
क़ुर्बत की आग, दूरियों का शबाब,
नज़र से नज़र का मिलता जवाब,
इश्क़ का ये कैसा पेचीदा हिसाब,
जैसे कोई ख़्वाब, या फिर महताब।
नैनों से उतर कर दिल में समाए,
हुस्न की ये कैसी अजब अदाएँ,
हर एहसास एक नई दुनिया बनाए,
दिल को धड़कने से भी परहेज़ कराए।
तुमसे मिल कर जैसे ख़ुद से मिला,
ये कैसा जादू, ये कैसा सिलसिला,
गहरे जज़्बातों का है ये गुलदस्ता खिला,
हर लम्हा जैसे एक नया फ़रिश्ता मिला।-