मेरे बिन तुम्हारी कल्पना कुछ ऐसी ही की जाएगी।
जैसे मैक्सवेल और न्यूटन के बिना फिजिक्स की।-
नफ़रत ही बनी है इस दुनिया में तेरे लिए 'रंजन'
वैसे ये मोहब्बत तुझे हज़म भी नहीं होगा।।-
------के बाद------
हम सभी उदास होते हैं,
लम्हा गुजर जाने के बाद।
आँसुओ को भी बहाते हैं,
वक्त बीत जाने के बाद।
कुछ बूंद आँसुओं के गिरा दें,
हम भी उनके जाने के बाद।
काश कभी खुदा भी देखते जब,
खुशी मिलती थी उन्हें देखने के बाद।
खुदा ने आज एक बेटे को बुलाया,
माँ को बुलाने के बाद।
'रंजन' वो दिलीप को छोड़ गए,
शायद ले जाएं इरफान के बाद।-
अब तो लिखना भी, मुनासिब नहीं रहा है।
मैं, इश्क नहीं इस ठंडी की बात कर रहा हूँ।-
--------कौन कहता है--------
ख़ामोशियों में छुपाता वजह ग़म का,
पर आज़र्दाह नहीं ये कौन कहता है?
हँस देता हूँ अफ़सुर्दा हालातों में भी,
पर उनसे मैं बेख़बर कौन कहता है?
थक कर बैठ जाता हूँ लम्बे सफ़र में,
पर नहीं चलूँगा आगे कौन कहता है?
यूँ तो नहीं जीना-मरना इन हाथों में,
क़ुर्बान ख़ुद को कर लूँ कौन कहता है?
जानते गुफ़्तगू ही मसलों का हल है,
इक़्तिज़ा के बग़ैर ये कौन कहता है?
चाहत अज़ीम शख़्सियत की सबको,
इंसां मतलबी नहीं कौन कहता है?-
दिखी फिर आज मुझे वो मेरे सपने में,
चेहरा आज भी धुँधला ही रह गया।
वक्त तो उसके साथ बिताए सुकून के,
नींद टूटने पर आज भी परेशान रह गया।
चाहतें - ख्वाहिशें तो थे पहाड़ जैसे,
सब कुछ आज धरा का धरा रह गया।
मेरे हिस्से में समय भी तो बहुत ही थी,
न जाने कैसे वो भी खत्म हो रुक गया।-
कुछ ख़्वाब लिखने शुरू किए।
एक बरसात आने पर
सुबह सारे के सारे धुल गए।-
लोग कह रहे हैं कि बढ़ चला साल भर उम्र तुम्हारा।
रंजन, हकीक़त ये है कि घट गया है साल भर तुम्हारा।-
आज पास हूँ तो फ़ासला रखते हो,
कल दूर हो जाऊँ तो ढूंढ़ते फिरोगे।
कहते हो चले जाओ नज़रों से दूर,
चला जाऊँ तो यादों का क्या करोगे?
साथ हूँ तो भारी सा लगता हूँ तुझे,
कंधा नहीं दूँगा तो दिल हल्का कैसे करोगे?-