ओ रंगरेज.........
इश्क का एक आठवां रंग
होना मुनासिब था..
तेरी सुस्ती ने
जहां को बस
सात रंगों में समेट दिया...।।-
!!{~~रंगरेज~~}!!
जहां को सात रंगों में
समेटने वाले रंगरेज
उब गई हूं इन सात रंगों से
एक नया रंग इजाद करो
जिंदगी के कैनवास पर
मुझे खुद को फिर से उकेरना है-
सतरंगी रंग से रंगी वो इस बार की होली,
रग रग में रंग कर वो इस बार मेरी हो ली।
भीगी चुनर भीनी महकी, भीगी इस होली,
भाव भंगिमा के भंवर में वो मुझ में खो ली।
अब भी अबीर अशेष है कि आने को होली,
अनुरक्ति आसक्ति से वो मेरे अंक में आ ली।
छुप छुप छलकाती रंग बन छनछन सी होली,
छज्जे की ओट से मुझ पे छुईमुई सी छा ली।
प्रिया प्रियतमा बन खेली पिचकारी से होली,
पिया पथ पर रख के पग, वो मुझको पा ली।
बाहुपाश में हो कर बोली बहक जा इस होली,
बरसती प्रेम बारिश में वो बीज प्रेम का बो ली।
हृदय हर के वो हर्षित, हद तोड़ी दी इस होली,
हुई हया से वो हरी, कह दी मै तुम्हारी हो ली। _राज सोनी-
ओ रंगरेज
ये इश्क मोहब्बत वाली
रवायतें छोड़ो
मेरे मन की सुन लिया करो
अपनी हजारों बातें सुनाया करो
बस यह कहासुनी जिंदगी भर जारी रहे
समय के साथ ये किस्से फीके नहीं पड़ते।-
ओ रंगरेज
ना यकीन हो जो
मेरे इश्क पर
खुद में उतर कर देखना
तेरे हर जर्रे जर्रे
इक अलहदे रंग में
मैं मौजूद मिलूंगी..!!-
ओ रंगरेज
कि अब के लिखने से पहले
अपनी स्याही संग मेरी शोख़ अदाएं घोलना
पन्नों पर तेरे अल्फ़ाज थिरकते हुए नजर आएंगे
#कोरे_पन्नों_का_रंगरेज-
ओ रंगरेज
उतार कर रख दी है
वो बनारसी साड़ी
अरसे बाद भी
रेशा रेशा तुम्हारी छुअन का
एहसास कराता है...!!-
ओ रंगरेज.....
कभी बिखरी जो मोहब्बत
तो भी सुकून रहेगा
अब तो जिंदा हूं तेरे किस्सों में
तेरी कविताओं के अल्फाजों में
सलामत हूं मैं
और अमर रहूंगी
कायनात की क़यामत तक..!!
#कोरे_पन्नो_का_रंगरेज-
ओ रंगरेज
कि तेरे इश्क में जो पहली बार घुला ये दिल
दुनिया की हर शै सतरंगी नजर आती थी-
ओ रंगरेज .....
इतने गहरे अस्ल ना घोला कर
की तेरे अल्फाजों में जो डूबे
तो उबर ना सके-