"तस्वीरे कहां बयां करती हैं दर्द अपना,
गम जानने दिलों में उतरना पड़ता है...
मुस्कराहट की मज़ाल ही क्या, वो समझा दे,
चेहरे को दर्पण दिखना पड़ता है...।'
#यादों_की_कसक-
इन झुकी पलकों की बातें छोड़ो आज...
क्या दिल कत्लेआम इन्हीं आंखों से करोगे।
कह रहा है रुकती धड़कनो का तान भरा साज...
कि तुम जिस्म से तड़पोगे या आंखों के नूर से मरोगे...।
#यादों_की_कसक
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"ये साँझ ढली ले रंग सुनहरा,
अब ओढ़ चुनरिया पीताम्बरा...||
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डूब चुका नभ क्षितिज में वो...
सूरज हल्की किरण छोड़कर...
कुछ पल पहले था रूपहला वो...
लालिमा अब लगी गले दौड़कर...
कोई चित्रकार का झौला लेकर...
लगी रंगने पश्चिम बादल सारा...
ये साँझ ढली ले रंग सुनहरा,
अब ओढ चुनरिया पीताम्बरा...||
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देख औजस्वी की ताकत वो...
नीड़ के पंछी पथ पूर्वांचल चले...
रोमांचित करअलख जगाती वो...
आशिकी मिलन की आस तले...
कोई ढलती शाम स्याह सी लेकर...
बुने प्यार का ताना बाना सारा...
"ये साँझ ढली ले रंग सुनहरा,
अब ओढ चुनरिया पीताम्बरा...||
#यादों_की_कसक-
।।क्यों सिद्दत से पूछ नहीं लेते मेरी बेबसी के हाल...
मैं हिय की आरजू तुम्हें बताना चाहता हूँ...।।
कभी मेरे जज़बातों भरी किताब के पन्नों को पलट देख.
हर नुक्ते अक्षर शब्द वाक्य पैरा में तेरी दिलकश दास्तां हैं.
तुम्हें मालूमात हैं उन लम्हों की जिसे मैं संजोता रहा हूँ
कर खबर अपने दिलदार की तुम्हें महबूब का वास्ता हैं
कभी तो जान ले तुम मेरी आशिक़ मिजाज़ी हाल...
मै शबनमी ख्यालों में तुम्हें बसाना चाहता हूँ...
क्यों सिद्दत से पूछ नहीं लेते मेरी बेबसी के हाल...
मैं हिय की आरजू तुम्हें बताना चाहता हूँ...।।
सिमट रही छुईमुई सी यादों की तवारीखे बनकर
छूने से नहीं, दूर रहकर ही कसक बढ़ती रहती हैं
इम्तिहान लेना छोड़कर तुम कोई प्यार की सरगम छेड़ दो
न कह सको कोई बात तो अपना वहीं पुराना बचपना जता दो
कभी गौर कर टूटी नाफरमानीयों के हाल...
मै वहीं इश्क़ की तामील करना चाहता हूँ...
क्यों सिद्दत से पूछ नहीं लेते मेरी बेबसी सी के हाल...
मैं हिय की आरजू तुम्हें बताना चाहता हूँ...
#यादों_की_कसक-
क्यों निहारते हो चाँद को तुम...प्रियतम का अक्स यहाँ नहीं आता।।
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ये चाँद गगन में कभी आधा आता,कभी अंधेरी रातों में खो जाता।
उसका चित में चित्र जब भी आता,दिलकश तस्वीर मन में पूर्ण ही लाता।
हां चाँद जब भी पूरा आता,दागदार मुखड़ा सामने लाता।
ये तो निर्मल साफ छवि रख कर,दिल को बाग बाग कर जाता।
क्यों निहारते हो चाँद को तुम...प्रियतम का अक्स यहाँ नहीं आता।।
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चाँद तो सिर्फ रातों में आता,दिन में जब भी आता... फीका रंग लाता।
ये तो हरपल बसंत बहार लाता,माहौल रँगरेज सा मधुबन कर जाता।
चांद के साथी लाखों तारे, गगनमंडल और कवि गण सारे।
इसके संसार में तुम एक ही आते,तुम ही हो बस प्यारे,ये अनंत गहराई में आकर विहारे ।।
क्यों निहारते हो चाँद को तुम...प्रियतम का अक्स यहाँ नहीं आता।।
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चाँद तो रातों-रातों भर जागता,शीतल चांदनी दे ताप जगा जाता।
मीत तो मीठे सपनो में सुलाकर,मकरंद रस जहाँ बसा कर जाता।
वो काले बादलों में छुपकर शरमाता,ये तो खुली बातें बतियाता।।
क्यों निहारते हो चाँद को तुम...प्रियतम का अक्स यहाँ नहीं आता।।
#यादों_की_कसक-
"मेरा इश्क कोई उम्र का मोहताज थोड़ी है...
बस तुम मुस्करा दो, छुपा प्यार जवां हो जायेगा..।"
#यादों_की_कसक-
"गुजर गया मक्खन का दौर, मशीनों में दही देखता हूं।
खत्म कहां जिजीविषा मेरी,लकड़ियों पे हाथ सेकता हूं।
मौकापरस्त कहां मै, मेहनत ही बेचता हूं।
कद्र कला की नहीं, तभी तो सरेराह बैठता हूं...।"
#क्या_साहेब...-
रुक सी गई है मेरी मोहब्बत वाली घड़ी की,धड़कने वाली सुई़...।
किसी कुर्ब़त के बाज़ार से लाकर,चाहत वाली बैटरी लगा दे...।
#यादों_की_कसक-