काली स्याह आई,
किसी की ज़िंदगी छीन
उसे मौत के घाट लाई,
उसे अपनों से दूर कर
बहुत वो खिलखिलाई,
एक रात ऐसी भी
काली स्याह आई,
अपने साथ न जाने
कितने दर्द ले आई,
रातभर रोते-रोते
जो रात हमने फिर
कभी भुला न पाई !!-
आसमान में चमकते
उस चाँद को,
लगता है मानो
वो चाँद नहीं,
किसी के सीने में
धड़कता
दिल हो जैसे...!
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शीशे का हो ऐसे
आसानी से
टूट जाता है,
लाख समझाओ
मत भाग किसी
बेकदर के पीछे
पर ये सुनता कहाँ
भागा ही जाता है,
खेल जाते हैं लोग
अक्सर इससे ये सोचता
कहाँ बस भावनाओं में
बहता चला जाता है,
ये दिल जैसे दिल नहीं
एक खिलौना बन के
रह जाता है !!-
आखिर में तुम्हें करना वही है
जो लोगों ने है कहना,
लोगों की परवाह करते हुए
अपनी एक ना सुनना,
घुट-घुटकर सोच-सोचकर
सिर्फ खुद को ही तकलीफ देना,
सोचकर भी जब कुछ
करना ही नहीं तो
फिर इतना क्या सोचना ?
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इश्क़ करना गुनाह नहीं
यह दुनियावालों को
क्यों नहीं बता देते,
जात-पात रंग-रूप को
इन मामलों से हटाकर
अलग क्यों नहीं रख देते,
एक नज़र से देखा जाए
तो इंसान का लिबाज़ ही
तो पहने हुए हैं सब,
फिर दो प्यार करनेवालों का
साथ तुम निस्वार्थ होकर
क्यों नहीं दे देते,
दिल का मसला अपने हाथ में
नहीं होता जनाब ये बात तुम
लोगों को
क्यों नहीं बता देते ?
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जो कह न पाए वो
नशे की हालत में,
जो कर न पाए वो
कितनी आसानी से कर दिया
नशे की हालत में,
जो जुटा न पाए वो
कितनी आसानी से खो दिया
नशे की हालत में,
क्या कुछ रह गया है
कहने-सुनने को
अब इस हालत में ?-
गुरु - शिष्य
कहते है किसी से कुछ भी अच्छा सीखने को मिले तो
वो गुरु समान ही होता है !
सही कहते है, मैंने भी यह किसी अनजान से मिलकर ही जाना....
( Read in Caption )-
माना कद्र नहीं कि मैंने
इतनी उलझी प्रेम के भँवर में,
मैंने ध्यान ही नहीं दिया तुमपे
जब तुम आती थीं तब भी
मैं जागा करती थी
तुम्हारी बात में न माना करती थी,
पर अब याद आती हो बहुत
जब से रूठी हो मुझसे
रात लम्बी हो गई है तबसे,
गुज़ारिश है मेरी
नींद तुम यूँ रूठो न मुझसे !!-
किसने दी बद्दुआ हमें
यहाँ अपनों से ज्यादा पराये बहुत हैं,
किसे पता है कितना रोया है वो
जिसका हमने दिल दुखाया बहुत है,
किसे पता है असल में मौसम के बारे में
बदले तो यहाँ इंसान भी बहुत हैं,
किसे पता है आनेवाला शख़्स कैसा हो
पर जानेवाला हर शख़्स ज़ालिम बहुत है,
किसे पता है हमारा कल क्या हो
तुम भी दिखवा लो जल्दी अपना हाथ,
यहाँ हाथ देखकर किस्मत बतानेवाले बहुत हैं !
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तुम इसके हुए, तुम उसके भी हुए
कितनी मिन्नतें की पर हमारे कभी न हुए,
हर दर पर हमने तुम्हें खुदा से माँगा
लेकिन खुदा को भी यह गंवारा न हुआ,
फिर हारकर छोड़ दी उम्मीद यह सोचकर
ऐसे इंसान कभी किसी एक के न हुए,
आगे बढ़ जो गए हम तो तुम आ गए हमारे होने
जनाब तुम जो अब मेरे हुए,
तो क्या फायदा..
क्योंकि इश्क़ छोड़े तो अब हमें ज़माने हुए !!
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