मेरे मन मस्तिष्क में
गुंजयीमान करते हो तुम
ॐ ध्वनि की तरह…...
रोम रोम में समाये हो
भाव से परिपूर्ण हैं
मेरा तुमसे सम्बन्ध देह से परे हैं..
धीरे धीरे घुल गए हो मेरी साँसों में
और अपने अंतस में असीम
तृप्ति का अनुभव कर
तुम्हारे प्रेम को महसूसती मैं
जो किसी सुंदर राग की तरह
मेरे मन में गहरे पैठ गए हो...
और मौन रहकर भी
मेरे अधूरेपन में
पूर्णता का आभास कराते तुम!!!!
केवल तुम!!!!
सुनो, एक बात कहूँ...
तुम्हारा प्रेम मौन जरूर है
मगर पूर्ण है!!!!-
बहुत सोचना और कम कहना
दरअसल बहुत सारे में से
थोड़ा-सा कुछ चुन लेना है
जैसे प्रेम करना
रोना,
याद करना
हम कितना ही प्रेम करें,
रोये,याद करें
ये नहीं बता सकते कि
कितना प्रेम करते हैं,
रोते हैं,
याद करते हैं.
कह सकते हैं केवल.
इतने बड़े आसमान में से
एक टुकड़ा बादल चुन सकते हैं
ये बताने के लिए कि
बादल के एक टुकड़े जितना ही
सफ़ेद, नीला और
सुकून से भरा है
आसमान बराबर हैं ये मन
जो मापा नहीं जा सकता है,
जो कहा नहीं जा सकता।-
तुम हो ....
मेरे सबसे करीब
इतना करीब
कि मैं कह देती हूँ
मन के भीतर की
वो बात तुमसे
जिसे मैं
आईने से भी
कहने में
संकुचाती हूँ
जिसे सोचने भर से
पीढ़ा का अनुभव होता है
और वो एहसास
शब्दों में जाने कैसे
स्वत: ही
ढलने लगता है
और एक एक शब्द
बयां होने लगता है
मानो
कोई जादू
तुम वो हो जिसका
मेरे जीवन में होना
बहुत जरूरी है...
तुमसे मेरा रिश्ता ऐसा हैं
जहां वक्त गतिमान नही
वहां ठहराव हैं
समय में भी
और रिश्ते में भी
सुनो न...
यह ठहराव ही प्रेम है !-
तुम्हारे प्रेम में मैने
अग्नि को नहीं परन्तु
जल को साक्षी बनाया है
पूर्ण विश्वास के बंधन के लिए
उसे अपनी आँखों का सागर बनाया है।
मैंने प्रेम करते हुए स्वयं को
तुम्हें समर्पित कर दिया
जैसे नदी समर्पित कर देती है
स्वयं को किसी दिशा में
चाहे दिशाएं नदी को
किसी भी पथ पर ले जाए ।
मेरा हर सुख तुम्हारी कामना से जुड़ गया
अब मेरे लिए कोई भी कामना करना
तुम्हारे संपूर्ण अधिकार में है।-
तुम्हारी यादों से बनी
मेरी एक दुनियां हैं
जहां से लौटने का
कभी ख़्याल नहीं आता...
जाने कैसी अनुभूति है
तुम्हारे यादों में
सारे दुःख, पीड़ाएं,
विरह, विक्षोभ,
पल पल बदलते विचार
मानो सबको रोक लेते हैं
और सब निकलने लगते हैं
अश्रु धारा के रूप में...
एक मात्र तुम्हारी यादों से
मानो सब खाली हो रहा है
जो भरा था जाने कब से
कुछ दिल में, तो कुछ दिमाग में
और उन सबका बोझ
जो मुझे हर पल
बेसुध सा किए जा रहा था...
मैं जानती हूँ
इस समस्त सृष्टि में
अगर कोई है मेरे लिए
तो वो तुम हो...
जो जीवन के प्रत्येक क्षण में
मेरे साथ हैं...
और मैं जानती हूँ
हमारा प्रेम आत्मिक है
जो रहेगा..अनंत काल तक!!-
कहती आयी हूँ....
तुम्हारे गुस्से से भी मुझे प्यार हैं,
लेकिन जानते हो?
सिहर जाती हूँ मैं,जब देखती हूँ
सिंदूरी पलाश फुटकर पसरा हैं
लगता हैं जैसे.....
तुम्हारी आँखों में आक्रोश उतरा हैं....
तुम नहीं जानते मेरे जीने के लिए काफ़ी हैं
इसी संसार के किसी कोने में तुम्हारा होना
जीवन में पल भर के लिए तुम आये थे
और मेरे मन की सारी अव्यवस्था खत्म कर गए
अब किसी अँधेरे में आँखे बंद करके चल सकती हूँ,
कि जानती हूँ प्रेम का अलौकिक प्रकाश मेरी आत्मा में हैं....
बहुत दिन से जिए जा रही हूँ एक खानबादोष जिंदगी,
कि तुम कहाँ हो, किधर हो मुझे कुछ ख़बर नहीं,
ये दुःसह पीड़ा अंतस में दबाये बैठी हूँ..
फिर भी निश्चिन्त हूँ इसलिए अब हर किसी से तुम्हारा हाल नहीं पूछती..
दौड़कर ईश्वर का द्वार नहीं खटखटाती
जानती हूँ तुम्हें सुरक्षित रखना
मेरी नियंता पर कर्ज हैं।-
डरती हूँ तुम्हें खोने से कि तुम कहीं
मुझसे दूर न चले जाओ कभी
और मैं फिर से
खामोश खंडहर की तरह सुनसान हो जाऊं
और मुझपर बेसुमार बेहिसाब
कंटिली झाड़ियां उग आये
मुझे तुमसे सुरक्षा चाहिए
जैसे कलाई पर बंधा मन्नत का कलावा
जैसे माथे पर लगा भगवान
के नाम का टीका....
जो इस बार आना मेरे पास
थाम के मेरी हाथों की रेखाओं को
अपने दोनों हाथों से
और देना मुझे साहस जीने का
मुझे रखना अपने इतने पास कि
मैं तुम्हारे धड़कन कि आवाज़
साफ-साफ सुन सकूँ.....
तुम्हारे पास होने का एहसास
हर लम्हा महसूस कर सकूँ....!-
ये माना! मैं जो चाहती हूं वो नही कहते हो तुम !
मगर इतना तो समझती हूं कि समझते हो तुम!!
बहुत ही गहरी भरी आँखें मानों सागर हो!
वहाँ भी सोने की मछली से थिरकते हो तुम !!
दर्द की!टीस भी!और हँसी के फव्वारे भी!
मेरे लम्हात के हर शै से गुज़रतें हो तुम!!
और भी!और भी! कई फर्ज़ निभाने है तुम्हें
ख़याल-ओ-ख्वाब में धड़कते हुए कहते हो तुम!!
जाने कहां कहां ढूंढती रहती हूं तुम्हें...
क्यों खामोशी के जंगल में रहते हो तुम?
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आस
तुम्हे देखने की ,
तुम्हे मन में सहेजने की।
कोशिश
तुमसे प्रेम की,
तुम्हारा प्रेम पाने की।
ख़्वाहिश
तुममय हो खुद को भूल जाने की,
तुमसे साधिकार स्नेह पाने की।
मीठा
तुम्हारा ख्याल ,
तुम्हारी याद ।
अजीब
मैं , ये दुनिया
और ईश्वर ।
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प्रेम से सकारात्मक होते हैं हम ,
और नदी की तरह बहते हैं हम,
जब भी मैं उदास होती हूँ,
आ जाती हूँ यहाँ गंगा के किनारे
देखने इसके बहाव को....
छू लेती हूँ इसके बहते पानी को,
तुम्हारे मन जैसा शांत लगता हैं,
तुम्हारी सादगी देखती हूँ बहती नदी में...
जब देखती हूँ नदी में ख़ुद को
जानते हो...
उसमें दिखते हो तुम
उदासी दूर हो जाती हैं..
तुम पास आ जाते हो,
और ये मन कहता हैं..
तुम हो तो मैं हूँ
तुम हो तो सब हैं!-