सब कुछ कबूलना
मन मग्न झूलना।
एक माँ भरोसे
दुख शूल भूलना।
निर्मल मासूमियत।
खुल दिली तबीयत।
आज ही आनंद
कल की न वसीयत।
हंस-हंस रोना।
चिंता ना ढोना।
पेट जब भरा तो
क्या है फिर खोना।
Mukta Sharma Tripathi
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मंजिल के कहे पर जो चलता जाएगा।
मुसाफिर वही उजली दुनिया सजाएगा।
Mukta Sharma Tripathi-
हाँ ! तुम ही बताओ ?
क्या, क्यों, कहाँ, कैसे, कब
पैरों तले रौंदती इस दुनिया में
कौन, दूसरों के लिए सोचे अब!!
।। मुक्ता शर्मा त्रिपाठी ।।
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आओ हम बिछड़ जाएं ।
एक दूसरे को भूल जाएं ।
भुला कर गुस्से फिर मिलें।
अजनबी से हम फिर खिलें।
न मन में कोई खलिश रहे।
सामने रहने की कशिश रहे।
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इस धारे, कभी उस धारे।
बहते मन तरंग सहारे।
तिनके मटक-मटक भटकते,
मगर मिलते नहीं किनारे।।
✍️मुक्ता शर्मा त्रिपाठी-
एक प्रेमाची नजर
त्या नाजरेवर विश्वास
कधी वाटल न्हवत
त्यामध्ये असेल एवडा उपहास-
सोचा हुआ है जो कुछ, वो करके दिखलाएँगे।
सपनों को पंख लगा, नभ की सैर करवाएँगे।
✍मुक्ता शर्मा त्रिपाठी-
मंजिल के कहे पर जो चलता जाएगा।
मुसाफिर वही उजली दुनिया सजाएगा।
Mukta Sharma Tripathi-
भावों से जो भरे बस्ते हैं ।
एक नहीं हजारों रस्ते हैं ।
अमूल्य निधि जीवन की
कौन बोला कि बड़े सस्ते हैं ?
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