माँ
तेरी ख़ुश्बू ही तो है माँ जो
हर पल मेरे वजूद को महकाती है
जो भी मिलता है कहता है मुझसे
तुमसे तो तुम्हरी माँ की झलक आती है
सच कितनी खुशी मुझे मिल जाती है 😊
तेरी ही महक से तो चहक जाती हूँ मैं माँ
मेरा महकना मेरा चहकना लाज़मी है माँ
तु जो मेरी हर साँस में समाई है मेरी माँ-
माँ की ममता की थाह ,समुद्र की गहराई से भी ज़ियादा गहरी है।
मेरी नन्ही सी क़लम में ,वो रौशनाई कहाँ जो,बयाँ करूँ,
तेरी ममता की गहराई माँ ।
सिर्फ एक लफ़्ज़ "माँ"ही लिख पाती हूँ मैं,
जब भी तेरी इबारत लिखनी चाही माँ ।-
अंजुम सी तेरे आँचल में झिलमिलाती रहती थी मैं तो "माँ"
शमीम-ए-जाँ सी आज मेरे वजूद में तुम महकती हो "माँ"-
"माँ " लिख कर तेरा नाम जब भी चूम लेती हूँ
मैं,ख़ुद में ही गुम ख़ुद के वजूद को ढूँढ लेती हूँ-
माँ
ख़्वाबों, ख़यालों में जब भी तुम आ जाती हो
आकर मेरी हर उलझन तुम सुलझा जाती हो
छूती है जब भी हवा मुझे बड़े प्यार से आकर
अपने होने का एहसास माँ तुम करा जाती हो-
कजरी आँखों में स्वपन श्यामल पाला करते हैं
माँ तुम मिलने आओगी ये सोच हम बहलते हैं
माँ,माँ,ओ माँ हर लम्हा तुझे ही पुकारा करते हैं
हो बज़्म कोई भी, हर जगह ज़िक्र तेरा करते हैं
माँ तेरी नसीहतों भरी गठरी संग लिए चलते हैं
हर मुश्किल का हल उसी में हम खोजा करते हैं
माँ तेरी दुआओं की ठंडी छाँव तले जो रहते हैं
रह-ए-ज़िन्दगी की कड़ी धूप में बेफ़िक्र चलते हैं
माँ तेरे वजूद की महक से जो हम महकते रहते हैं
माँ तेरा नाम ले लेकर हर लम्हा हम जीया करते हैं-
आब-ए-रवाँ सी तेरी यादें है,मेरे ज़ेहन में।
मुसलसल हर लम्हे में महकती रहती है माँ।-
शब सजाती है जब बज़्म फ़लक पर
मह-ओ-अंजुम भी जगमगाने चले आते है
फ़लक पर जो झिलमिलाते है
महताब के संग मैं वो "अंजुम" नही
मैं तो अपनी "माँ"की आँखो का एक नन्हा सा तारा हूँ
रोशन हूँ मैं जिसके नूर से वो नूर "माँ"से मैने पाया है-