यही मुझे सिखाया गया
बस इतना ही मुझे आया है
नहीं सोचा मैंने कभी खुद का
बात जब भी मेरे आन पर आया है
जब बुरी नज़र पड़ी मेरे ही सम्मान पर
जान न्योछावर खुद की कर आया है
लोगों के पीछे जब मेरे अपने सम्मान को जाते देखा
तब खुद से अपना ही विश्वास उठ आया है
अपनों के लिए मैंने सर झुकाना है सीखा
झुका सर देख मेरा अपनों ने ही खिल्ली उड़ाया है
गोली लगी फिर भी शान से अडिग रहा मैं
हाँ मुझे सर धड़ से भी अलग करने आया है
मेरी शान मेरे मातृभूमि की ख़ातिर मैं कुछ भी कर जाऊँ
मेरे पवित्र "माँ" के लिए "अमर" अपनी जान भी देने आया है-
हाँ यारों
आख़िरकार वो आई है
इंतेज़ार था जिस घड़ी का
आज वो घड़ी अब आई है
न बहाना है आज देरी का
यारों बड़ी फ़ुर्सत से वो आई है
वक़्त ने क्या ख़ूब करवट लिया
देखो वो शर्मोहया छोड़ आई है
दुल्हन सी सजी है वो
गले लगकर रोने वो आई है
लहूलुहान पड़ा मैं यहाँ
वो भी लाल जोड़े में खूब इतराई है
डरते डरते सही
पर मुस्कुरा कर वो आई है
ज़माने से छुप छुपा कर
आज मेरी मौत मिलने आई है
हाँ यारों
आख़िरकार वो आई है
ये आख़री सलाम है अब मेरा
चलता हूँ मेरी महबूब मुझे लेने आई है-
It's very hard to be motivated
When you're a loser
But in terms of motivating others
it become very easy when you're a loser-
आज बात करता हूँ तेरे कान में लगे उस झुमके की
क्या कहूँ, दिखने में तो बड़ा हसीन लगता है
पर सच कहता हूँ, तुझ पर सजा हुआ और भी प्यारा लगता है
To be continued..-
मैं अक्सर तारों के शहर में घूमने निकल पड़ता हूँ
जहाँ ना औकात दिखती है ना ही
तारों की चमक में किसी की हैसियत
दिन में शहर रंगीन और काफ़ी बड़ा दिखता है
पर रात के अंधकार में इसकी भव्यता
और भी विशालकाय हो जाती है
इस शहर में बोलने को ज़ुबाँ की ज़रूरत नहीं होती
इन तारों में तो एक अलग ही ऊर्जा का प्रभाव है
वो कहते हैं न की ख़ामोशी बोलती-सुनती नहीं
यहाँ तो सब कुछ एक तरँग में बहता सा लगता है
जैसे हँसने को होंठ नहीं रोने को आँसूँ की ज़रूरत नहीं
बस सारी बातें दिल से होती हैं और ख़ामोशी ही इनकी ज़ुबाँ है
वैसे मेरे काफी सारे दोस्त बन चुके हैं यहाँ
दिन के उजाले में मुझे दूर से निहारते रहते हैं सब
पर रात होते ही छुप्पन छुपाई शुरू हो जाती है इनकी
बस ख़ामोशी को ही समझने का हेर फ़ेर है
वरना कुछ लोग यूँही अंधकार से घबरा जाते हैं
और मुझे बेसब्री से इंतेज़ार होती है हर रात एक नई दुनिया में चले जाने की-
सुंदर प्रसन्न हैं देवी देखो मैया की प्यारी भोली सूरत
आँखों में दया का भाव है वो हैं प्रेम की सच्ची मूरत
जगत माता देवी शक्ति हैं वोतो हैं मेरे शिव की पूरक
उनकी मुस्कुराहट है जैसे भोले शिव की प्यारी सूरत-
ऋतू आ रही है कार्तिक मास की
देखो कितना सुहाना मौसम हुआ है
हुए आनन्दित सभी धरती गगन में
मिट गई अशुभता फिर देखो जग अब रौशन हुआ है
हो गई आरम्भ खुशहाल शुभ नवरात्र की
देखो मेरी प्यारी माता का शुभआगमन हुआ है
हैं सुंदर स्वरूपा मेरी गौरीशंकर जी के
आई हैं दुर्गा माता देखो शुभता का सुंदर प्रदर्शन हुआ है-
पँच तत्वों से मिलकर बने हैं
इन सब का दिल से आभार जताना है
कैसा ये पागलपन करता काहे घमण्ड रे मानव
एक दिन सबको इसी में विलीन हो जाना है
शिवशक्ति दोनों एक समान "अर्धनारीश्वर" स्वरूप हैं
फिर सच जान काहे आखिर स्त्री पुरुष में भेद है
मैं त्याग दे और अपना आँख खोल रे मानव
नारी सिर्फ़ खुद का नहीं वो हर पुरुष का भी सम्मान है
जिसमें "मैं" नहीं उसी में बसते "महादेव" हैं
विश्वास कर शिव प्रसन्न तो शक्ति हर वक़्त तेरे साथ है
अन्तर्मन की सुन और ख़ुद के भीतर झाँक रे मानव
समझ जाओगे शक्ति के बगैर पुरूष का नही कोई पहचान है-
रातें शबनमी कल भी साथ थीं और आज भी यहीं हैं
फर्क बस इतना सा है ग़ालिब..
कल ख़ुश्बू साथ थीं और आज पुरवाएँ बांकी यहीं हैं-
कहीं खो गया कहीं अकेला मैं बैठा रहा
ख़ुशी तेरी आस में मैं क्या क्या करता रहा
बैठे रहे इंतेज़ार में तन्हा मैं हँसता रहा
गिनती अपने साँसों की इत्मिनान से करता रहा-