तू रुत है बसंत की तो मैं भी सावन की बरसात सोच ले मुझे ठुकराने से पहले ऐ चंद लम्हात की बहार गर न बरसा तेरे बंजर दामन में तो तुम भादव की काली अमावसी रात हो
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