क्या कहना मेरे देश की तरक्क़ी का
पहले सिर्फ़ गंवार थे अब पढ़े-लिखे-
मुमकिन नही,
"आवारा" परिंदा हूँ खुले आस्मां का,किसी के पग... read more
रीत गया हूँ मैं अन्तःतल तक,
इस जीवन में रंग भरते-भरते,
अलोप ज्ञान विवेक शून्य तक,
इस जीवन में प्रेम भरते-भरते,
बीत गया हूँ भविष्यकाल तक,
भूतकाल मे ध्यान करते-करते,
घूम आया शिशुमार चक्र तक,
तुम मिलोगे कामना करते-करते,
भूल गया हूँ मैं अपना ग्रह तक,
प्रेमान्तरिक्ष भ्रमण करते-करते,
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सारी रात खंगाला अंधेरों को,
कुछ शब्दों से पहचान हुई,
डूब गया था खुद को पाने को,
नई किरणों से पहचान हुई,
कानों ने सुना पंछी के शोरों को,
बिन सोये ही फिर सुबह हुई,-
नामालूम कितने हवसी नयन हमारे हैं
कमबख्तों ने सौ पर्दों में छुपे बदन उघारे हैं-
खाली पन्ने को पढ़ना आ जाता है
तन्हाई से ख़ुद को गढ़ना आ जाता है-
क्या हुआ कि अब वो भी नखरे दिखाने लगे
हर बात में गेशू काजल बिखरे दिखाने लगे-
जिसपे पड़ें तुम्हारे नंगे कदम वो रास्ता होना है
जिसे देकर तुम राजी हो मुझे वो वास्ता होना है-
अंधेरे खौफ देते हैं चरागों से बगावत है
सफ़र में हर मुसाफिर की मुसाफिर से अदावत है
जिसे मौका मिला उसने डसा हमको मगर फ़िर भी
भला हूँ मैं बुरा है वो सभी की ये कहावत है
कभी देखो कहीं पर तुम ठहर कर होश में खुद को
तो जानोगे हकीकत में कहां पे क्या बनावट है
मुझे लाया गया है क्यूं यहां ऐसी जगह बोलो
जहां पैसे खुदा हैं और जिस्मों की इबादत है
नहीं मालूम हमको क्यूं नजूमी कह गया राजा
न पैसा है लकीरों में न माथे पे लिखावट है
फटी जेबें तुम्हें मालूम कैसे हों मेरे यारों
हमारी सब कमीजों पर खुदा की खास सजावट है
कभी नेता बना जो बाप गलती से कसम रब की
यहां पर भी कहेगा ये विरोधी की सियासत है
शऊर काला नफ़स काली करम काले धरम काले
दुआ पूजा इबादत की यहां पे बस दिखावट है-
गिद्धों से है प्रभावित चरित्र अपना
गिरगिट नहीं चंदन है मित्र अपना
बदबू के रिश्तेदार ढूंढते गुलों को
पसीना बनाया है हमने इत्र अपना
वो और हैं जिनके जैसे लाखों होंगे
कायनात में इकलौता चित्र अपना
दो लोगों से मिल ख़ुश होने वालों
दुआ से बद्दुआ तक है जिक्र अपना
मैं आवारा परिंदा हूँ मशहर का सुन
पिंजरे के तोते तू फिक्र कर अपना-
यहां से जाते - जाते वो जाने क्या - क्या कह गया,
मेरे अलावा ख़ुदा जाने मुझमें क्या - क्या रह गया,-