कोई नाम पूछ रहा था हमारा
ख़बर कर दो उन्हें के बेनाम है वो-
आया हूँ किस काम, बता दूँ
अपनी शायरी का दाम, बता दूँ
किसने दी है ख़ून भरी ग़ज़लें
पूछो तो क्या नाम, बता दूँ
किस ने भेजे पैग़ाम, बता दूँ
सच दुनिया में सरेआम, बता दूँ
आज चुन ली एक राह मैंने
कहाँ ख़त्म होगा मुक़ाम, बता दूँ
सुनो तो बात तमाम, बता दूँ
ख़ुद को शायर ग़ुलाम, बता दूँ
लोग जानते ही होंगे नाम मेरा
या फिर से नाम बेनाम, बता दूँ-
छोटे दिल पर मत जाओ तुम बेनाम
ये बताओ हो कितने तुम जहां में चाहने वाले-
अपना मकाँ रोशन किया फिर छोड़ दिया
मैं वही दीया हूँ जिसे बुझाकर छोड़ दिया
उम्र भर हो जाऊँ तेरा मैं ये सोच रहा था
देखते-देखते तूने गले लगाकर छोड़ दिया
अफ़सोस की बात तुझपर इतबार किया
अरमाँ ही पुरे करने थे जो अपनाकर छोड़ दिया
तेरी याद में ऑर्डर कर बैठा चाय का उसी होटल में
बिन तेरे क्या पीना कप टेबल के नीचे छिपाकर छोड़ दिया
उसका बिन बताये चले जाना गैरों की बाँहों में
अब तुम वहीं खुश रहो आज उसे ये समझाकर छोड़ दिया
शायरी, ग़ज़ल, नज्म, कहानी,गीत पता नहीं क्या-क्या बनेगा
ये मत समझना बेनाम ने लिखा और मिटाकर छोड़ दिया
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मेरे जज़्बात को लफ्जो में बया करना मुश्किल है,
बे अजिज है मोहोब्बत हमारी इसे खरीदना
ना मुम्किन है।-
तुमने तो मेरे हँसते चेहरे को याद बना रखा होगा
कौन जाने बेनाम ने दिल में कितना ग़म छुपा रखा होगा-
नाम ना दो कोई
इस एहसास को बेनाम रहने दो;
सुनो,
जज़्बातों के समंदर को यूँ न छेड़ो तुम
इन्हें गुमनाम रहने दो।-
एक दरिया जो सोख गया ख़्वाहिशें मेरी
हम प्यास-ए-दिल भरने किस नहर जाते
जिंदगी की कशमकश में तेरी कश्ती ना डूबे
अगर डूबती तो क़सम से पानी में उतर जाते
तुझे देखा तो लगा यही है जिंदगी की सड़क
फिर नहीं देखा आशिक़ी के रास्ते किधर जाते
कोई वक्त ही नहीं जो उतर जाए तेरा नशा
तुम ही बताओ शराबखाने किस पहर जाते
ए-हसीन हुस्न छुपाकर रख परदे में अपना
बुरी निगाहों से देख ना ले कोई तुम्हें शहर जाते
देखा है तुम्हें लोगों की बातों पर वाह-वाह करते
बेनाम के शायर क्यों नहीं तुम्हारी नज़र जाते
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एक ऐब तुझमें भी है बेनाम
नशा भरोसे का उतरता ही नहीं
ऐ-दिल कितना तरस खायेगा
कभी बेरहमी वाली गली गुजरता ही नहीं-
बुरी निगाहों से जो शिकार करते हो
रंग रूप देखकर फिर प्यार करते हो
दूर जाओ मियाँ बातें बेकार करते हो
खुद कैसे हो कभी आईना तो देखते
बुराईयाँ लोगों की हजार करते हो
दूर जाओ मियाँ बातें बेकार करते हो
खुद बिगड़ते जा रहे हो दिनों दिन
पूरा जहां सुधारने के करार करते हो
दूर जाओ मियाँ बातें बेकार करते हो
नक़द मिल जाती है बेनाम से ग़ज़लें तुम्हें
मगर तुम वाह-वाह करने में भी ऊधार करते हो
दूर जाओ मियाँ बातें बेकार करते हो-