सच में ख़ुद के ही हम न हुए
यार हक़ीक़त जो तुम न हुए
ख़ुद खुशियाँ हाथों से बाँटी
पर मेरे ही ग़म कम न हुए
खूब हँसाया रोते - रोते
चश्म मगर मेरे नम न हुए
चाहा खूब कि रोकूँ तुझको
तेरे इनकार ख़तम न हुए-
2122 2122 212
इश्क़ में अक्सर वफ़ा कम ही मिली
है मिली जितनी जफ़ा कम ही मिली
हम मिले ज़्यादा हर इक मुलाक़ात में
यार वो तो हर द़फ़ा कम ही मिली
है जरूरी रूठना भी प्यार में
वो मगर मुझसे ख़फ़ा कम ही मिली
घूँघट में रह कत्ल जो करती रही
हो के बेपर्दा हया कम ही मिली
ज़िंदगी तो है ख़ज़ाना-ए-सबक
हाँ मुझे इस से दया कम ही मिली-
अभी तुम हो अभी मैं हूँ, अभी शामें सुहानी है।
अधूरे हम अधूरे तुम, अधूरी ये कहानी है।
करो कुछ बात ऐसी तुम, लगे दिल को ग़ज़ल जैसी,
करी ना गर मुहब्बत तो, ये' बेमतलब जवानी है।
मिलाकर लब लबों से तुम, हदें अब इश्क ढहने दो,
लगाकर अब गले तुमको, इज़ाजत इश्क पानी है।
कदर कर लो मिरे दिल की, शिकायत है यही तुमसे,
मिरे दिल में हिफ़ाज़त से, तिरी पहली निशानी है।
मिले जो वक्त तुम को तो, हमारे दर चले आना,
छुपी तस्वीर जो दिल में, वही तुझको दिखानी है।
नहीं कुछ माँगता तुझसे, यही फ़रियाद 'ठाकुर' की,
लिखी तारीफ़ में तेरी, ग़ज़ल तुझको सुनानी है।-
कैद हो जाओ मकानों में मगर
होश में आओ कि खतरों में सफ़र
आसमानों से परे था उड़ रहा
अब पड़ा क्यों कैदखानों में बशर
ना इबादत पाक तेरी अब रही
ना रहा तेरी दुआओं में असर
कायनातों की तबाही कर गया
आदमी कारण फिजाओं में ज़हर
अब डरा सहमा कहाँ पर है छुपा
मौत की आई हवाओं में खबर-
हँसा कर मुझे यूँ रुलाया न कर
गले से लगा कर पराया न कर
हमारा यहाँ कौन तेरे सिवा
फलक में बिठाकर गिराया न कर
अकेले सफर ये कटेगा नहीं
थमा हाथ हाथों छुड़ाया न कर
तुझी से जहां और है रोशनी
ज़हालत में' आँखें चुराया न कर
हमें मार ना दे कहीं बेरुखी
हमेशा हमें यूँ सताया न कर-
खुला आसमां आशियाना बना था।
उगाया किसां ने तो खाना बना था।
हुई साजिशें लाख इन बादलों में,
तभी झोंपड़ी पर निशाना बना था।
सियासत किसानों की कातिल रही है,
यहाँ खुदकुशी तो बहाना बना था।
कहर है किसानों पे बेवक्त बारिश,
अमीरों का मौसम सुहाना बना था।
पसीना बहा अन्न जो भी उगाये,
वही भूख का क्यों ठिकाना बना था।-
दर्द की हो दवा तो बताये मुझे।
है गुजारिश मगर ना सताये मुझे।
जानता कौन होंगे हकीकत कभी,
ख़्वाब कितने ही उसनेे दिखाये मुझे।
है ख़ता यार मेरी तो दे दो सज़ा,
ख़ुश्क बन रोज़ यूँ ना जलाये मुझे।
बैठकर सामने बात करते रहें,
ख़ैर गुज़रे लम्हे याद आये मुझे।
चाँद तारों में गिनती हमारी करे,
बेरहम खुद फलक से गिराये मुझे।
होश जीने का हमको रहा ही नहीं,
ज़िंदगी ने 'सबक' तो सिखाये मुझे।-
तुम जो चाहो टूटे दिल जुड़ सकते हैं
गाँव कहाँ दूर, शहर से मुड़ सकते हैं।
सम्भाल रखे थे बरसों ख़त फाड़ दिये
आओ तुम तो फिर टुकड़े जुड़ सकते हैं।
साफ बच गए हम तो उन तलवारों से
पंख हुए घायल तो क्या उड़ सकते हैं।
खाई हो ठोकर दिल पर मोहब्बत में
पत्थर दिल आँसू बन कर चुड़ सकते हैं।
नामुमकिन कुछ ना तू जान यहाँ 'ठाकुर'
सुर तीखे फिर मीठा हो गुड़ सकते हैं।-
अश्क को चश्म में यूँ न लाया करो
तुम हमेशा ही बस मुस्कुराया करो
याद में हम कभी याद आएँ अगर
याद से याद को तुम भुलाया करो
हो सफ़र मैं तुम्हारे खुशी ही खुशी
दर्द का तुम भले मुझ पे' साया करो
प्यार से तुम करो मेरे' तौबा मगर
रात दिन यूँ न फिर आज़माया करो
हो जरूरत तुम्हे मरहम-ए-इश्क की
तुम ग़ज़ल को मिरी गुनगुनाया करो
हो गए जख्म 'मशहूर' तो क्या हुआ
अपनों' से तुम मुझे अब पराया करो-
1212 1212 1212 1212
चराग़े-दिल जला गया वो हमनवा अभी-अभी।
ग़ुबार दर्द प्यार का हुआ हवा अभी-अभी।
ग़ज़ले तलाश फिर उठी मिरे जिगर के कोने में,
नसीब जो हुई इसे दुआ दवा अभी-अभी।
अजीब उलझने खुमार इश्क यार दे गया,
सकून जिंदगी ने भी दिया गवा अभी-अभी।
बड़ी उदास लग रही तिरे शहर की हर फिज़ा,
करीब से हो गुज़रा जैसे जलज़ला अभी-अभी।
जलील इश्क में था जो यहाँ कई दफा हुआ,
मुरीद इश्क का हुआ वो दिलजला अभी-अभी।-