QUOTES ON #पहाड़ी

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2 OCT 2020 AT 13:48

पहाड़ी स्पेशल 😋

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हिंदी काव्य कोश
नव रचना साहित्य पब्लिकेशन
The writer junction
कोरा कागज़ ™
होली के हमजोली
3 नंबर उपविजेता ‘रंगीला हिंदुस्तान’

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प्रकृति शांत लय में बोलती है,
एक कालातीत गीत, समय से परे..
यदि आप सुनें, स्थिर और सत्य से,
धरती आपसे अपना प्रेम कहेगी..

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मांँ-बाप ही हैं सबसे बड़े गुरु
उन्हीं से हुई हमारी शिक्षा शुरू

गुरु-दक्षिणा में करो अर्पण
कदमों में उनके यह जीवन समर्पण।

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मुसाफ़िर बनना बेहद ज़रूरी है मंज़िल पाने के लिए
एक -एक पग बेशकीमती है पथ पर बढ़ने के लिए

सफलता के पथ पर आने वाली क्षणिक बाधाओं को
नजरअंदाज करना भी जरूरी है सफल होने के लिए

ख्वाबों को हकीक़त करने के लिए आज तुमको नींद
त्यागना भी जरूरी है कल चैन की नींद सोने के लिए

दृढ़ संकल्प और पक्के इरादे, बुलंद हौसलों के साथ
यहांँ नाम कमाना भी जरूरी है नाम फैलाने के लिए

सफल होना भी तो बेहद जरूरी है दुनिया में “सैंडी”
इस अमूल्य मानव जीवन को सार्थक करने के लिए।

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चौपाइयाँ
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दर्प कलयुगी कपूत भारी।
दंभी सुत की गई मति मारी।।
टूट गई आशाएँ सारी।
नष्ट-भ्रष्ट हुई स्वप्न क्यारी।।१।।
🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅

संपूर्ण रचना अनु शीर्षक में पढ़ें...
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हर कदम पर संकट है हमेशा अक्ल से काम लो
नकाब में छुपी शक्ल के इरादों को पहचान लो

चेतन सृष्टि के अंँधेरे का तुम सच जान लो
ज्ञान रूपी चिराग अपने हाथों में थाम लो।

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वाह रेे वक़्त तू भी क्या करामात दिखाता है
अपनों से ही गैरों का अहसास करवाता है
कभी सोचा भी न था कि ऐसे भी दिन आएंँगे
जान से ज्यादा चाहने वाले अपने ही गैर हो जाएँगे
दोस्तों मैंने तो रघुकुल वाली रीत चली
मेरे अपनों ने जयचंद वाली कुरीत चली
अपनों ने ही तो मेरा भेद दिया
तभी तो गैरों ने मत भेद किया
गैरों को भेद देकर कुछ नहीं पाया
मेरी नजरों में अपना ही मान गवांँया
मेरी कश्ती डुबाने में अपनों ने ही हाथ दिया
मुझे बचाने में मेरे हमदर्दों ने बड़ा साथ दिया
सैंडी के जीवन की पहली व अंतिम हार का कोई किस्सा ना होता
अगर मुझे हराने में मेरे अपनों का इतना बड़ा हिस्सा ना होता
जो मेरे साथ किया है,वो तुम्हारे साथ भी कर सकता हूंँ
चंद मिनटों में तुम्हारी जीत को हार में बदल सकता हूंँ
अभी शीशा हूँ मैं,तो अपनी शक्ल देखना
गर टूट गया तो फिर मेरी अक्ल देखना
मुझसे मत उलझना कभी,क्योंकि लड़ना मुश्किल होगा
लिखूंँगा कुछ ऐसा इतिहास की पढ़ना भी मुश्किल होगा
सुनो जयचंदो मंजिलों का मुसाफिर हूंँ चलता रहूंँगा
दुनियांँ की हर एक मुश्किलों से ऐसे ही लड़ता रहूंँगा
रोक सको तो रोक लो मैं तो तुम से भी आगे जा रहा हूंँ
सुन मंजिल मैं तेरा भी गुरुर तोड़ने आ रहा हूंँ
अब तो मन में एक गांँठ बांँध ली
अपनों में गैरों को पहचानने की कला जान ली
ग़र दुनिया से रुखसत भी हो जाऊंँ तो कोई ग़म नहीं,
मैं सैंडी हूंँ‌ गद्दारों,तुम जैसा जयचंद नहीं।

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काश! देख पाती निर्भया खुली
आंँखों से अपने क़ातिलों
को फांँसी के
फंदे पर
झूलते।

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आज ठहरी ज़िन्दगी अस्तित्व के लिए।

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