इश्क़ पढ़ते हैं!
इश्क़ लिखते हैं!
इश्क़ को जानते हैं!
इश्क़ ना हो जाए बस
ख़ुदा से यही दुआ मांगते है!!-
ये 'गीत' कभी पूरी ना होती,
अगर जज़्बातों से अधूरी ना होती!
अल्फाज़ यूं कभी ना सजते
दर्द से अगर ये वाबस्ता ना रखते!-
इंतज़ार दर्द आज भी है,पर वो कसक ना रही। आंसू फिर टपकते हैं, वो गर्माहट कहां गई। जिन आंखों में हर पल तेरे इंतजार का था, आज उन आंखों में नमी तक नहीं। कभी वक़्त था जो गुजरता ही नहीं था, आज उस वक़्त को भी तेरे इंतज़ार की आदत सी हो गई।
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तुझे चाहा तो दिल खाली!हम फ़कीर बन गए!!
ना पाया तो रूह खाली!दर्द के नज़ीर बन गए!!-
इन आंखो में, सपनों को संजों कर,मैं रखती हूं
तेरा जो नाम लेती हूं, तेरी जो बात करती हूं
याद जो आए फिर लौट कर ,तेरी मुझको
खुद को इस क़दर मसरूफ कर देती हूं
यादों की इबारत बना ,मजमून लिखती हूं
अश्कों के मोती से, ग़ज़ल मख़दूम करती हूं
फ़िक्र हो जो तेरी तो आंखो को छुपाती हूं
कैद कर आंसुओं को,मैं फिर मुस्कुराती हूं
इस तरह से ही खुद को मशगूल रखती हूं
तू ख्वाब था,ये हकीकत अब कबूल करती हूं।।
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तेरे लब बोसा जब भी माथे पे रख जाते हैं
जर्द होते हर एहसास फिर कुछ मुस्कुराते हैं
बाहों के पाश में जब ख्वाहिशें घिर जाती हैं
मुद्दातों से दबी आरजूएं फिर पंख फैलाती हैं
बेकाबू होते फिर हालात,तेरी छुवन जो पाते हैं
क्या कहें! खुद से ही खुद को हम हार जाते हैं
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कहानियों में उकेरा,पन्नों में उतारा
ग़ज़लों में समेटा,कविता में संवारा
खाली ना रह जाए कोना कहीं!
यादों को तेरी,दिल की दीवारों
पर,लम्हें दर लम्हें हमने उभारा
खाली भी रह गया हो,कहीं कोई
शून्य को!दर्द से अपने भर डाला
कोई ना उतरे गहराइयों में कभी!
अंतस की इच्छाएं,भावशून्य कह
फिर खुद को ही यूं बहला डाला।
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तुम दूर हो मगर
हमें यकीं है!
वो हमारे नज़दीकियों के पल!
आज भी तुम्हे छू के गुजरते होंगे।-
घर पहुंचते पहुंचते
सियाह रात होगी
उजाला तो हम
तेरे दर पर छोड़ आए
हमें मयस्सर अब
सिर्फ तेरी याद होगी-
तेरी याद हम खुद को, इस क़दर सज़ा देते हैं
आंख जो भर आए तो! झूठा ही मुस्कुरा देते हैं।-