Geet   (गीत)
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Joined 16 October 2019


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6 SEP AT 23:59

फ़ासले दरमियां इतने भी न थे हमारे,
कि जहां में हम फिर मुकालिमा न हुए।

तल्ख़ियां माना उन रिश्तों में आईं कुछ,
महज क्या इतनी ही हमसे मोहब्बत थी!

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3 SEP AT 23:37

मेरे एहसासों को अधूरा मत समझना
आज भी जिंदा हूं, पूरा मत समझना

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2 SEP AT 13:20

इस ज़मीं पे न सही

फ़लक में ही कहीं
रूह-ए-मोहब्बत मे घुलेंगें!

फिर इश्क़ के फूल खिलेंगे,

मुताबिक न इस जहां के
मुकम्मल होगा वहां पे

चलती सांसों में न सही
थम चुकी आंखों में कहीं

हम फ़िर मिलेंगे!!

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2 SEP AT 12:48

चाहे इस ज़मीं पे ना सही

उस फ़लक में ही कहीं
रूह-ए-मोहब्बत में घुलेंगे

हां फिर इश्क के फूल खिलेंगे

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9 MAR AT 9:01

जिम्मेदारियां के बोझ ने दिया ढक दिया ऐसे कुछ इक तो शौक थे वो भी मुकम्मल न हुए

चंद सिक्के अपनी ख्वाहिशों के लिए रखे
अपनों की फ़ेहरिस्त में वो भी पूरे ना हुए

सिलसिला थमता ही नहीं हमारे सफ़र का
वक्त और पैसा रुकता नहीं और कसर क्या

बस उम्र ही बेलगाम सी बढ़ती जा ही रही है
और पूरा होने के इंतजार में आरज़ू सिमटती

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6 MAR AT 21:28

वो शजर था!
हमारी ही तरह
बिखर गया

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5 MAR AT 23:31

तेरी यादों को दफ्न कर सुकून से जीना था जब
कमबख्त अब उसी कब्र में अपना मफ़र ढूंढते है

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5 MAR AT 23:04

अश्क बहते है फ़क़त, यूं चाहत नहीं है

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5 MAR AT 16:58

धीरे-धीरे हमें तन्हाई रास आने लगी है!
भीड़ में थे हम अब तलक
अब रुसवाईया भी हमको भाने लगी है
परवाह अब सिमट गई
बेपरवाहियां भी यूं मुस्कुराने लगी हैं
अपनों में खुशी ढूंढ रहे थे
अंजान बन 'ज़ीस्त' भी मुंह छुपाने लगी है।


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4 FEB AT 6:53

ना अब तेरी उम्मीद है
ना अब तेरी तलाश है

बिखरा है वो समेट लूं
बस इतनी ही आस है।

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