#परिवर्तनशीलता..
किसी भी भाषा की
नई से नई
पुरानी से पुरानी
पुस्तक में
प्रेम
बस प्रेम ही रहा।
प्रायः जो बदले
तो वे थे
पात्र और
पात्रों के नाम!
प्रेम ने यों
स्वयं ही प्रमाणित किया
कि वह
परिवर्तनशील नहीं
बल्कि है
बहुआयामी एवं
सर्वव्यापी।
तो बदलता
प्रेम नहीं
बदलते हैं
हम।
हमने
कभी सहर्ष
तो कभी विवशतापूर्वक
अवसर एवं
परिस्थिति अनुरूप
स्वयं को
भलीभाँति ढालना/बदलना सीखा।
शायद हमने
कुछ अधिक ही
सीख लिया !
--सुनीता डी प्रसाद💐💐-
22 FEB 2022 AT 19:20