मन की भी एक देह होती है निविया
जो यदाकदा स्पर्श की भूखी होती है
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उम्मीदें अक्सर पंगडंडी से
नहीं गुजरती है
वो गुजरती है राजमार्ग से
या उस पहाड़ी पथरीली जगहों से
जहां किन्ही कदमों ने कोई राह नही बनायी होती
सफलता
उनको ही मिलती है
जो इन उम्मीदों का पल्लू कसकर थामे
गुजरते है ऐसे ही दुरूह या लंबे रास्तो से
शॉर्टकट अपनाने वाले को
सफलता भी मुश्किल से मिलती है
मिल भी जाये तो क्षणिक रहती है
हर कोई चाँदी का चम्मच मुँह में लेकर नही जन्मता
निविया-
जैसे ,अभी कोई
पूछ बैठेगा
क्यों उदास बैठी हो
कभी कभी
खुद ही खुद से
ऐसे भी
रूठ जाती हूँ
मैं !!!!!
#नीलिमा
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अपना ही लिखती हूँ दिल के अंदरूनी कोनो से टटोल कर
उधार के लफ्जों से कब दिल की बाते बयान होती हैं-
कुछ मुट्ठियाँ
खुली
तो फिर बंद न हुयी
लोग रहमते लूट ले गये
हमें तो
खुदा से मिली
नियामतें भी
क़यामत सी
मिलती है
पूण्य कैसे होते
कोई सदका करे तो जाने
मुट्ठियाँ बंद करके-
कभी कभी यह शराफ़त का लबादा छोड़ कर खूब गालियाँ देने का मन करता है ।मेरे भीतर बसा शैतान भी थक चुका है गुलामी से।
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