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(दोहे)
रातों के हाथों लुटे, कई नेक इंसान।
किसी ने झेले छल कई, गई किसी की जान।।१।।
बड़ा जटिल है जानना, छल के रूप अनेक।
किसकी आंखें प्रेम की, कौन रहा बस देख।।२।।
कुटिल बुद्धि का तंत्र सब, अरु मिथ्या जंजाल।
डसने को बैठा हुआ, भ्रम का मायाजाल।।३।।
लोलुपता बढ़ने लगी, छीन रहे अब कौर।
मानो सब कुछ एक का, नहीं किसी को ठौर।।४।।
पानी पीना छोड़कर, प्रतिदिन पिए शराब।
'भानू' सब की जगत में, बुद्धि हुई खराब।।५।।-
(स्वयं)
'भानू' खुद से प्रेम कर, दे खुद को सम्मान।
शशिधर तेरे साथ हैं, फिर क्यों है हैरान।।-
(मतलब)
'भानू' जीवन में यहाँ, कौन समझता प्रेम।
अपने मतलब के लिए, पूछें तेरी क्षेम।।-
(जज़्बात)
जीवन में मेरे प्रिये, जब तक थीं तुम साथ।
तब तक मेरे हृदय के, जिंदा थे जज़्बात।।-
(भानु)
ललितमयी लालित्य सी, लाली लिए ललाट।
आमोदित जन-जन हुए, 'भानू' हुआ विराट।।-
(अश्रु-एकांत)
प्रिये तेरे वियोग में, बस अश्रु अरु एकांत।
सुध हो तो बहने लगें, बेसुध हो तो शांत।।-