QUOTES ON #थेपड़ा

#थेपड़ा quotes

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10 FEB 2020 AT 11:39

फुर्र से उड़ जाती है चिड़िया !
मेरे पास क्यूँ आती है चिड़िया !!
हम कितना खुद को छिपा लें
हो जाता है सब कुछ उरियां !!
सामने जब भी वो आ जाए है
चुप-चुप हो जाती है चिड़िया !!
हमने जब भी उसको देखा है
कुछ-कुछ कहती है चिड़िया !!
मेरे भीतर जो"वो" रहता है
बस उसकी सुनती है चिड़िया !!
पेड़ों को काटे जाए है आदम
गुमसुम-सी रहती है चिड़िया !!
क्यूँ सोचे है इतना तू गाफिल
सब चुग जायेगी ये चिड़िया !!

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30 MAR 2020 AT 21:34

चाहता कोई भी तो नहीं
मगर ज़िन्दगी में
हर किसी को ही
क़दम-दर-क़दम
या यूँ कहूँ कि अक़्सर
मिल जाया करते हैं
बच्चों के खिलौनों की तरह
बेशुमार धोखे ही धोखे
एक कौर का भी जब
निगला नहीं जा पाता
नमक बढ़ा हुआ
ज़रा-सा ग्रास....
तब भी पचा लिए जाते हैं
अनचाहे भी
गहरे-से गहरे धोखे
क्योंकि वो एकदम से
अचानक से आते हैं


शेष कविता अनु शीर्षक में

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14 MAR 2020 AT 9:00

सर्वोच्चता को लाँघ कर
आसमां फर्लांग कर
सुमति में रम रहो
स्वयं में तुम थम रहो

उत्कृष्टता की डोर हो
नवीनता की भोर हो
इक अनूठा सातत्य हो
जो सत्य से अनुरक्त हो

कलम ही वो म्यान हो
सुघड़ता की जो धाम हो
सार्थकता की वो खान हो
कलात्मकता की जान हो

भरे-पूरे मुकामों में
इक तेरा वो मुक़ाम वो
तेरे किये कार्यों का
एक बेहतरीन ईनाम हो

चली चलो चली चलो
बढ़ी चलो बढ़ी चलो
मंजिल तुम्हारी तलाश में
रुको न तुम बढ़ी चलो !!

#राजीव #थेपड़ा

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14 MAR 2020 AT 9:09

यह लेख शेयर करते हुए मैं यह बात कहने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूं, कि अक्सर हम व्यक्ति के बीत जाने के बाद कितनी आसानी से उसके कार्यों का अपने मन मुताबिक विश्लेषण करके अपने मन मुताबिक ही उसे किसी भी कैटेगरी का करार सिद्ध कर देते हैं !
हालांकि एक व्यक्ति में बहुत सारे आयाम होते हैं और इतना ही नहीं कई बार किसी व्यक्ति को न चाहते हुए भी अपनी गहरी अंदरूनी चाहत से हटकर दूसरी मजबूरी के तहत कार्य करना पड़ता है, जो उस समय जरूरी जान पड़ता है ।

(बाकी के विचार नीचे कैप्शन में पढ़ें)

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