QUOTES ON #चिंतनमंथन

#चिंतनमंथन quotes

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27 APR 2023 AT 12:46

औरतों के लिए आरक्षण हमेशा ही विवाद का विषय रहा है। राजनीति हो या कार्यस्थल सब जगह महिला आरक्षण की बात की जाती है। और शायद मैं भी इसी विषय पर कुछ कहना चाहती हूं।मेरी बात महिला वर्ग को शायद बुरी भी लगे और इस पोस्ट पर मेरी पूजा भी हो।पर मैं ये पूछना चाहती हूँ कि क्यों चाहिए हमें आरक्षण?क्या हम दिमाग़ी और मानसिक स्तर पर इतनी कमजोर हैं कि हमें हर क्षेत्र में जहां पुरुषों का वर्चस्व हैं वहां हमें सब कुछ सजा-सजाया चाहिए?क्या हम अपनी मेहनत से कुछ हासिल नही कर सकती? जब हमारी तुलना धरती से की जा सकती है तो हम कमजोर कैसे हुईं। कहने को तो औरत पुरुष से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है पर चाहिए उसे आरक्षण का तमगा ही।औरत पुरुष से समानता का भी अधिकार चाहती है और आरक्षण भी। दोनों ही बातें एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं।जब समानता का अधिकार ले रहें हैं तो आरक्षण की बात कहकर ख़ुद को कमजोर क्यों करना चाहते हैं हम?

#चिंतन

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25 APR 2023 AT 11:08

ईश्वर को किसी भी प्रचार या सुरक्षा की
जरूरत नही है वो तो स्वयं ही शासक है।
जो स्वयं ही रचयिता है इस पूरी क़ायनात का
उसे किसी भी प्रकार के न तो प्रचार की
आवश्यकता है और न ही किसी जगह की।
जो कण कण में विद्यमान है
हम उसे एक जगह कैसे स्थित कर सकते हैं।


#चिंतन

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7 FEB 2024 AT 18:42

मैंने अक़सर देखा है fb और yq पर,जब भी मैं किसी की पोस्ट पसंद करती हूँ और उस पर comment देती हूँ तो सामने वाला धड़ल्ले से मेरी posts पर like&comments करके उस क़र्ज़ को उतार देता है।वो ये देखने की ज़हमत नही उठाता कि मैंने क्या लिखा है क्या नही बस like और comments आने शुरू हो जाते हैं बिना किसी gap के। तो plz मेरे followers& friends से मेरा करबद्ध निवेदन है कि मेरी रचनाओं पर अपनी स्वतंत्र राय दें न कि मैं जब उनकी कोई रचना पसंद करूं इसके बदले में वो मुझे मिथ्या टिप्पणियों से नवाजे।

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11 DEC 2023 AT 21:12

हर कोई धर्म अधर्म को जानता है
पर सब जानबूझकर
अधर्म करते हैं
कोई वेद कोई शास्त्र
या कोई भी धर्मग्रंथ
जब तक धर्म नही सिखा सकता
जब तक ख़ुद हमारे अंदर धर्म जागृत न हो।

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28 APR 2023 AT 16:30

पुरुष हमेशा पुरुष ही रहता है,चाहे वो पिता के
रूप में हो या फिर पति,भाई या बेटे के रूप में।
किसी भी कार्य को करते समय वो पुरुष पहले
होता है रूप बाद में लेकिन स्त्री हमेशा स्त्री नही
होती वो माँ है तो माँ ही रहती है,बेटी के रूप में
बेटी और बहन-पत्नी के रूप मेंबहन-पत्नी।उसे
बाद में याद आता है कि वो औरत भी है पहले
वो अपने किरदार को देखती है न कि स्वयं के
अस्तित्व को।

#चिंतन

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26 JAN 2024 AT 21:50

2 प्रकार के व्यक्तियों से कोई संबंध न रखो- मूर्ख और दुष्ट. इस श्रेणी के लोगों को न तो कुछ समझाने की चेष्टा करो न ही उन से कोई तर्कवितर्क करो. हम माने या न माने हम उन से कभी नहीं जीत पायेंगे।

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1 MAY 2023 AT 22:58

We see many places, women are honored in 'First' in hotels, colleges and schools, but where women should be given first place, they are not given first place. When a child is born, the father's name is given at birth. Mother's pain and sacrifice are all forgotten and the woman becomes a mother only in name, but it should happen that the child gets the name of the mother. But this does not happen even if women make themselves capable in every field. In a male-dominated society, the status of women is considered secondary, whether it is a woman prime minister or a common citizen.

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30 APR 2023 AT 22:07

हम अखबार में,पास-पड़ौस में दिन-प्रतिदिन घरेलू हिंसा से संबंधित घटनायें पढ़ते और देखते हैं।और ज़ाहिर सी बात है कई बार आँख भी बंद कर लेते हैं।मेरे पास भी बहुत से मामले आते हैं घरेलू हिंसा से संबंधित।औरतों की बस एक शिकायत वो हमें मारता पीटता है हम क्या करें,कैसे बचें,कैसे घर में शांति हो।मैं सिर्फ़ उनसे एक ही बात कहती हूँ कि जब वो मार रहा होता है तो तब तुम्हारे अंदर की रणचंडी और दुर्गा उस वक़्त कहाँ चली जाती है जो प्रकट ही जब होती है जब कोई हमें सड़क पर सरेराह छेड़ रहा होता है। उसको तो हम नही बख्शते।उसे थप्पड़ चप्पल कुछ तो मारते ही हैं और कुछ नही तो गाली ही दे देते हैं।तो फ़िर पति नाम का प्राणी जब पीटता है तो उसे जवाब क्यों नही देते?उसे क्यों नही बताते हाथ हमारे भी हैं।

#चिंतन

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26 APR 2023 AT 9:56

कहीं किसी निचली सी सड़क पर खड़ा रहता है
हम लड़कियों का वज़ूद और दूर दिखती है
ऊँची सी सड़क जहां पर बस लड़के खड़े रहते हैं।
चाहे कोई भी क्षेत्र हो क्रिकेट या फिर राजनीति,
शिक्षा या फिर जन्म।हर बार हम लड़कियाँ उस
सड़क के लिए संघर्ष करती हैं जहां लड़के पहले
से ही बिना संघर्ष के पहुंच चुके होते हैं।

#चिंतन

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"स्व"
स्व का चिन्तन-मन्थन करिए,
विकसित जो पूर्वजों के द्वारा,
एक नहीं सैकड़ों वर्ष में यह विकसित हो पाता,
भारतीय "स्व" काल सुसंगत,युगानुकूल है,
अपनी उन्नति स्व से होगा,
उधार संस्कार की नही जरूरत,
खोजें हम सब स्व को अपने,
अपनायें स्व को गौरव से,
किसमें देखें स्व को अपने?
भाषा,भूषा,संस्कार,संस्कृति,रीति-परम्परा,
पर्व,साहित्य,परिधान, व्यंजन,औषधि,
लोकाचार,मंदिर व अन्य में।
स्व से होंगे विश्वगुरु हम,स्वत्व जगायें व अपनाएं।

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